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________________ ३२. सौ श्लोक कह्या मैं तो डरतो, गुरु आतप-भय स्यूं थरहरतो। बो सँहस रचै फिरतो-घिरतो, गढ़ चूरू में... ३३. मुझनै मत नां झूठो जाणो, ल्या खड़ो करूं यदि अजमाणो। परखो अरु छाणो पहचाणो, गढ़ चूरू में... ३४. मैं सेवक जिणशासण रो हूं, नहिं नयो सदा जो हूं सो हूं। विश्वास नहीं अपणो खोऊ, गढ़ चूरू में... गढ़ चूरू में, तेरापन्थी संत कवीश्वर! चालो। सुख रूं-रूं में, पास्यो नहिं विसरास्यो एक'र चालो।। ३५. पंडितजी रै पासै आवी, कहि बात विगत सब समझावी। है दिखलायो उज्ज्वल भावी, गढ़ चूरू में... ३६. धीमै-धीमै कवि-हाथ ग्रह्यो, तेरापथ रो इतिहास कह्यो। श्री कालू पुण्य-प्रकाश नयो, गढ़ चूरू में... ३७. है अमित शांति युग नयणां में, अमृत-रस बरसै वयणां में। जीवन जागरणा जयणां में, गढ़ चूरू में... ३८. ल्यो शिष्य सैकड़ों साधू है, अविचल आज्ञा-आराधू है। कोइ अजब जागतो जादू है, गढ़ चूरू में... ३६. भारी संगठन सलूणो है, तप तेज बधै दिन दूणो है। किण ही बाते नहिं ऊणो है, गढ़ चूरू में... ४०. जिणशासण रो अधिनायक है, पंडितजी! देखण लायक है। 'रावत” तो बीच सहायक है, गढ़ चूरू में...! वदै यूं पंडितजी वाणी, वदै रघुनंदनजी वाणी। तेरापंथ पास नहिं जाऊं, हरगिज मैं जाणी।। ४१. पढ़े भणे नहिं मूल, बण्या अणपढ़ रा अगवाणी। काव्य कोश व्याकरण वरण री सुणी न सहनाणी।। ४२. जावै जो कोइ पास, हास अरु इज्जत री हाणी। कटुक कटुकवत वचन वदन-घन स्यूं बरसै पाणी।। ४३. कूप तड़ाग बाग बणवावै पुण्यात्मा प्राणी। तिणरो करै निषेध, नहीं महिमा है अणजाणी।। ४४. जीव-दया में पाप बतावै श्रुतपूर्वा क्हाणी। एक-एक है बात भ्रात! म्हारै दिल अणखाणी।। १. यतीजी २. लय : तावड़ा धीमो-सो तपजै १४२ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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