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________________ २. ओछी संख्या में हुयो, श्रमण-सती मेलाप। सुद चौदस दिन च्यार जण, दीक्षा ली स्थिर थाप।। ३. 'धिनावास' अरु 'धाकड़ी', 'सोजत रोड़' सुरोड़। ___ बरसाई ‘बगड़ी' झड़ी, ‘गुडा' च्यार' गणमोड़।। ४. 'सिरियारी' 'कंटालियै', 'राणावास' सुवास। ___ 'रामसिंहजी कै गड़े'२, है होली चउमास।। ५. स्वामी आया ‘आउवै', विद पख चेत सुमास। ___प्रतिमा-पूजा पर चली, धार्मिक चरचा खास। ६. 'बीठोड़े थोड़े समय, 'चोबा-' 'चाणोद' । ____ 'समंदड़ी' में स्वामजी, समवसऱ्या सामोद।। ७. विचरत पुर बालोतरै, श्री शासण-सिरताज। नेक भविक प्रतिबोधिया, तेरह दिवस विराज।। ८. पूज पधाऱ्या पाधरा, ‘पचपदरै' सोभाग। श्रद्धालू घर सैकड़ां, है अंतर अनुराग।। सयण जण! सांभळो वारु कालूयशोविलास। ६. पचपदरै में आविया जी, प्रतापजी अभिधान। भूतपूर्व श्रावक सही जी, संघ-बहिष्कृत जान।। १०. खरतर अंचल गच्छ रा जी, दोय जती ले साथ। पेटी पोथ्यां री भरी जी, ल्याया निज संघात।। ११. कनीरामजी की कृती सिद्धांतसार ले हाथ। समाधान हित स्वाम स्यूं जी, पू, झीणी बात।। १२. इणमें मिथ्यात्वी-क्रिया जी, आज्ञा-बाहिर सिद्ध । जय-कृत 'भ्रमविध्वंस' में जी, आज्ञा-मांहि समृद्ध ।। १३. सूत्र-पाठ स्यूं नहिं मिलै जी, पूज्य करै फरमाण। अठै भगवती जो हुवै तो, देखो करी मिलाण।। १. रामसिंहजी का गुड़ा (छोटा), चतुरोजी का गुड़ा, बड़ा गुड़ा, अजवोजी का गुड़ा। २. हवेल्यां वाला गुड़ा ३. लय : जम्बू! कह्यो मानलै रे जाया! ४. स्थानकवासी मुनि १३६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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