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________________ २३. सब में अग्रगण्य इक बोले, प्रभु तो पंचम नाणी जी। गर्भ-छतां पिण हूंता साहिब! तब कुण चूक निशाणी जी? २४. जद जनम्या जद परण्या भगवन, तब ही केवलधारी जी? ___पुत्री एक हुई तब ही? पूछतां शीघ्र स्वीकारी जी।। २५. बोलै पूज्य विनोद भाव में, अब कोई प्रश्न न बाकी जी। केवलज्ञानी गर्भ धरै अरु जनमै परणै भाखी जी।। २६. सुणो सयाणां! छद्मस्थां री म्है तो चूक बताई जी। केवलियां नै परणावत, नहिं थानै शंका आई जी।। २७. बिन बोले सहु होले-होले, निज-निज सेरी संभी जी। द्वेष-भाव स्यूं निंदात्मक परचेबाजी प्रारंभी जी।। २८. राणा फतेसिंहजी इक दिन, छापा निरख्या नयणां जी। हीरालालजी' मुरड्या आगल, यूं आखै निज वयणां जी। २६. थांरी निंदा रा जो छापा, विद्वेषी जन छापै जी। थे विरोध-प्रतिरोध बहानै, मत होज्यो इक मापै जी।। ३०. 'बड़ो हुकम' कहि नै मुरड्याजी पंथ-प्रणाली गाई जी। म्हारै गुरु रो ओ ही कहणो, समता भाव सदाई जी।। ३१. एक अनर्गल बात उठाई, पंचायत-नोहरा में जी। जलती भट्टी में गउ धसगी, पन्थी ऊभा सामे जी।। ३२. पिण को गउ नै नहीं निकाली, देखो निर्दयताई जी। सारै पुर में अरु घर-घर में, चरचा एक चलाई जी।। ३३. राणाजी पिण पेंफलेट पढ़, मुरड्याजी नै भाखै जी। इणरो प्रत्युत्तर तुम देवो, साच लहै सहु साखै जी।। ३४. श्री राणाजी रो दिल देखी, साची घटना छापी जी। सारी जनता में जो फैली, वितथ कथा सब कापी जी।। ३५. चार मास पंचायत नोहरै, नहिं कोई भोज बुलावै जी। जीमणवार बिना कुण तिण में, भट्टी जाय जगावै जी।। ३६. बिना जगायां क्यूं कर गउवर, भट्टी में आ पड़गी जी। 'ग्रामो नास्ति कुतः सीमा', जड़-मूला झूठ उखड़गी जी।। लावणी छंद ३७. मालव प्रदेश री स्पेशल ट्रेन सुहाई, छह सौ मिनखां ने एक साथ ले आई। पुरजोर प्रार्थना की मालव पधरावण, पायो गुरु-मुख-संकेत उमंग-बधावण ।। १. एक तेरापंथी श्रावक, जो उदयपुर राणा फतेहसिंहजी के कामदार थे। २. तेरापंथी १३४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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