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________________ हां रे किण ठामे मिलसी तेरापंथ-भदंत जो, नयन निहारूं तो म्हारा तन मन ठरै रे लोय।। २३. हां रे तब आया ब्यावर नग्र व्यग्र-दिल चाल जो, निरख्यो है सुविशाल भाल श्री पूज रो रे लोय। हां रे चिहुं तीरथ रो एकत्व सत्त्व समकाल जो, पावै प्रमुद निभाल चंद मनु दूज रो रे लोय।। २४. हां रे गुरु-अंगे झळकै ब्रह्मचर्य रो तेज जो, पळपळाट कर पळकै वदन-विध-द्यती रे लोय। हां रे वर चरण-रयण री चळकै चमक सहेज जो, भळकै भळ जुग-नयण-विभा ज्यूं विद्युती रे लोय।। २५. हां रे आ वदन-गगन उमटाणी आणी जोर जो, बरसै वचन-अमिय-धाराधर-धोरणी रे लोय। हां रे बिच उपनय हेतू शीतल पवन झकोर जो, चातुर-नर-चित-चातक-पातक-चोरणी रे लोय।। २६. हां रे करि लोचन-गोचर सकल अलौकिक बात जो, लालाजी मन राजी कहतां नहिं बणै रे लोय। हां रे बलि दम्पति-दीक्षा' सहज सुखद साक्षात जो, निज नयणां स्यूं निरखी अतिभावुकपणे रे लोय।। २७. हां रे समझायो गुरुवर स्वल्प-स्वर संकेत जो, तिण रो झांक्यो असर अनश्वर वेश में रे लोय। हां रे पद-पंकज प्रणमी पहुंच्या नैज निकेत जो, लालाजी हित साझी गुरु उपदेश में रे लोय।। प्रबल पुण्य-पोरसो रे, ओ तो छोगां-कूख-उजार, प्रबल पुण्य-पोरसो रे। ओ तो कालू गण-सिणगार, प्रबल पुण्य-पोरसो रे, ओ तो जैन-जगत-आधार, प्रबल पुण्य-पोरसो रे।। २८. तेरापंथी टाळ नै रे, नाबालिग-प्रस्ताव करणो, यूं निश्चित हुयो रे, लालाजी रो भाव।। १. मुनि शिवराजजी और साध्वी हुलासांजी की दीक्षा २. लय : कीड़ी चाली सासरै रे १२६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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