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________________ ढाळः १. - दोहा १. जाहिर जर्मन देश रो, जेकोबी मतिमान। ___दर्शन अरु इतिहास रो, ख्यातिप्राप्त विद्वान ।। २. अष्टादश भाषा-विबुध, वक्ता पठिता प्राज्ञ । विविध-विषय सिद्धांत रो, जिज्ञासू सद्भाग्य।। ३. वयोवृद्ध चिंतन-तरुण, कर्मठ सक्रिय स्फूर्त। लक्ष्य-समर्पित दृढ़मना, जीवन-जागृति मूर्त ।। ४. दशवैकालिक उत्तरज्झयणं आचारंग। इंग्लिश-अनुवादक प्रथम, निरुपचरित निस्संग।। ५. भारतीय धर्म-स्थिति-संस्थिति-अनुसंधान। है सलक्ष्य पुनरागमन, संप्रति हिंदुस्तान' ।। ६. श्रावकगण जोधाण में, जा साध्यो सम्पर्क। तेरापंथ सुपंथ रो, व्यतिकर सुण्यो अनर्घ । । आवै अब आवै, हर्मन जेकोबी जर्मन देश रो। सुण हृदय लुभावै, वरणन श्री तेरापंथ-पथेश रो।। ७. चिन्तै चतुर चकोर गोरवपु, सुणी अलौकिक वाणी। तेरापंथ-संघ री सुषमा, कालू-पूज्य कहाणी रे।। ८. जैन तीर्थ आगम जैनां रा, संघ निहाऱ्या शिष्ट। पण ओ अबलों रह्यो अछूतो, अश्रुतपूर्व अदृष्ट रे।। ६. परोक्ष तात्कालिक परिचय भी, सुणतां लागै श्रव्य। नगर लाडणूं अगर निकट हो, तो अवश्य गन्तव्य रे।। १०. आ अलभ्य एकत्व-त्रिवेणी', संप्रति सहज्यां देखू। संभव म्हारी भारत यात्रा, सफल सफलतम लेखू रे।। ११. श्रमप्रधान जो श्रमण-संस्कृती सुणी वीर-बरतारै। आज मिलै झांकण आंख्यां नै, मन उत्सुकता म्हारै रे।। १. देखें प. १ सं. ४६ २. लय : म्हारी रस सेलड़ियां ३. एक आचार्य, एक समाचारी और एक प्ररूपण-पद्धति, यह तेरापंथ संघ की त्रिवेणी अन्यत्र नहीं मिलती। ११६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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