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________________ लावणी छंद २८. मिगसर में पुर-सरदार पोष राजाणै, मर्याद-महोत्सव छायो छक बीदाणै । एकोत्तर दो सौ श्रमण, सती है भेळा, सुद सातम लागै अजब-गजब का मेळा। अब शहर लाडणूं पूरण मास विराजै, फिर सुजानगढ़ भी अभिनव शोभा साझै। चावै दोनूं पुर पावस री रिझवारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। २६. ठाकुर आणंदसिंहजी पुरजन सागै, अत्यधिक प्रार्थना सफल बणी बड़भागै। यूं साल सित्तरै रो पावस चंदेरी, सतरह मुनि श्रमणी है अट्ठावन हेरी। तपसी तपसण सावण में संयम पायो, अणचां' आसोजी गण में नाम कमायो। आसोज जड़ावां निज आतम निस्तारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। सोरठा ३०. वृद्धिंगत तप त्याग, मासखमण महिमानिला। हुया च्यार बड़भाग, सतियां में पुर लाडनूं।। लावणी छंद ३१. हो बीदासर पथ देशनोक रो लीन्हो, जाणो है बीकानेर कियो दृढ़ सीनो। धर्मां रो संगम कट्टर धर्मस्थल है, नहिं यात्रा निष्फल पुण्याई रो बल है। १. पष्टिपूर्ति समारोह (वि. सं. २०३१) के अवसर पर आचार्यश्री तुलसी द्वारा ‘दीर्घ तपस्विनी' के रूप में सम्मानित। २. साध्वी कस्तूरांजी (इंदौर), साध्वी हीरांजी (डीडवाना), साध्वी सुखांजी (चंदेरा) और साध्वी चांदांजी (आमेट) ने लाडनूं में मासखमण तप किया। ११० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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