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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद उमास्वाति (2-3 ई. शती लगभग ) ने सर्वप्रथम अपने ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र / तत्त्वार्थाधिगमसूत्र में यह परिभाषित किया कि सत् क्या है, जिसका मूल आधार श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ है ।' यद्यपि विश्व का मूल सत् है अथवा असत्, इस विषय में दो परस्पर विरोधी वादों का खण्डन - मण्डन उपनिषदों में भी उपलब्ध होता है। 60 वस्तुतः विचार से ही दर्शन की उत्पत्ति होती है | विचार दर्शन में कब परिवर्तित होता है? वास्तविक अर्थ में दर्शन की क्या परिभाषा होनी चाहिए? कभी-कभी ये बहुत ही मुश्किल होता है कि हम जिस विषय में बात कर रहे हैं, उसे उसी रूप में परिभाषित करना । जब हम किसी चीज को व्यवस्थित रूप से क्रमशः पढ़ते हैं, उद्देश्य के साथ पढ़ते हैं, कार्य और कारण के बीच सम्बन्ध स्थापित कर पढ़ते हैं, तब वह अपने आप दर्शन के अन्तर्गत आ जाता है । " सार रूप में यही कहा जा सकता है कि गणधरों के प्रश्नों के सिद्धान्त रूप धारण करने पर लोगों की जिज्ञासु वृत्ति ने किस रूप में उन विचारों को दार्शनिक रूप हस्तगत कराया तथा इनका अन्य भारतीय दर्शनों पर जो प्रभाव पड़ा, वह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । जैसे जिनदभद्रगणी क्षमाश्रमण ( 6ठी - 7वीं ई. शताब्दी) ने विशेषावश्यकभाष्य लिखकर जैनागमों के मन्तव्यों को तर्क की कसौटी पर कसा है और इस काल के तार्किकों की जिज्ञासा को शांत किया । यह कुछ ऐसा ही था, जैसा कि वेद वाक्यों के तात्पर्य के अनुसंधान के लिए मीमांसा दर्शन की रचना हुई । भगवान् महावीर के ग्यारह गणधरों के प्रश्नों को प्रस्तुत शोध के मतवादों से सम्बद्ध किया जा सकता है। प्रश्न और मतवादों का सम्बन्ध इस प्रकार ज्ञातव्य है - प्रथम गणधर इन्द्रभूति की शंका जीव के अस्तित्व के संबंध में थी 1. दलसुख मालवणिया, आगम युग का जैनदर्शन, पृ. 207 से आगे (f.). 2. ...........So what is philosophy in the real sense of the term ? When does a statement turn into a philosophy? Sometimes it is difficult to define exactly what we talk about. When we study certain things systematically with an objective behind it, giving it a causal relationship between the subject and the effect, then it automatically comes under the purview of philosophy. S.R. Banerjee, Understanding Jain Religion in a Historical Perspective, Jain Journal, Vol. XXXVIII, No. 3 Jan, 2004, Calcutta, p. 68.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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