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________________ 58 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद 4. पंचभूत है या नहीं? 5. इस भव में जीव जैसा है, परभव में भी वैसा ही होता है या नहीं? 6. बंध मोक्ष है या नहीं? 7. देव है अथवा नहीं? 8. नारक है अथवा नहीं? 9. पुण्य-पाप है या नहीं? 10. परलोक है या नहीं? 11. निर्वाण है या नहीं? ग्यारह गणधरों में से प्रत्येक ने एक-एक प्रश्न पूछा, जो कि तत्कालीन वैदिक विचारों से प्रभावित थे तथा उस समय के ज्वलंत प्रश्न थे। इनमें प्रथम गणधर इन्द्रभूति को जीव के अस्तित्व के विषय में शंका थी। अग्निभूति को कर्म के बारे में शंका थी और वह क्यों नहीं दिखाई दे सकता। वायुभूति को जीव और शरीर के सम्बन्ध में शंका थी कि शरीर को ही जीव माना जाए अथवा शरीर जीव से कोई पृथक् वस्तु है। व्यक्त की शंका सृष्टि के नियामक पांच तत्त्वों पर आधारित थी कि ये जो मूल पांच तत्त्व (पंच महाभूत) सत् है अथवा असत्। पांचवें सुधर्मा की शंका बंध और मुक्ति है अथवा नहीं इससे संबंधित थी। मौर्यपुत्र को देवता और स्वर्ग के अस्तित्व के विषय में शंका थी। अकम्पित को नरक के अस्तित्व विषयक शंका थी। अचलभ्राता को पुण्य-पाप विषयक शंका थी। मेतार्य को परलोक के अस्तित्व के बारे में शंका थी और अन्तिम ग्यारहवें गणधर प्रभास को निर्वाण विषयक शंका थी। ये सभी पंडित एक-एक कर भगवान् के पास शंका के साथ आए और समाहित होकर भगवान् के शिष्य बन गए। ये सभी गणधर जिस व्याकुलता, उद्विग्नता से भगवान् के पास आये, सही तत्त्व जानकर उतने ही शांतभाव से वैराग्य धारण कर लिया। - वास्तव में ये ग्यारह प्रश्न अन्वेषणीय हैं, शोध के विषय हैं क्योंकि वे प्रश्न उस समय सामान्य रूप से पूछे गए तथा जो उस समय सामान्य विचार थे, वो ही कुछ समय बाद जैन धर्म-दर्शन के प्रमुख गम्भीर सिद्धान्त (तत्त्व) बन गए। भगवान् महावीर के बाद उनके अनुयायियों ने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से उन सिद्धान्तों को विभिन्न दिशाओं में विकसित किया।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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