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________________ 56 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद हैं। नागार्जुन के वंदन में उनके गुण और पद का ही स्मरण है किन्तु स्कंदिल के वंदन में उनके अनुयोग की भी सूचना है, बल्कि यहाँ तक कहा गया है कि 'आज तक भारत वर्ष में स्कंदिलाचार्य के अनुयोग का प्रचार हो रहा है (नंदी, 1.37 [176])। इस प्रकार वर्तमान में जैन आगमों का मुख्य भाग माथुरी वाचनागत है, पर उसमें कोई सूत्र वल्लभी वाचनागत भी होने चाहिए, ऐसा कल्याण विजयजी का अभिमत है और सूत्रों में जो विसंवाद तथा विरोध के जो उल्लेख मिलते हैं, उसका कारण भी वाचनाओं का भेद ही समझना चाहिए।' वर्तमान में जो आगम ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनका अधिकांश इसी समय स्थिर हुआ था। इसके बाद कोई वाचना नहीं हुई थी। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वर्तमान में जो आगम ग्रन्थ मौजूद हैं, उनका अधिकांश भाग देवर्द्धि की वाचना का है। हमारे सामने मुख्य रूप से वही साहित्य हैं। अतः उसी को प्रमुखता दी जाएगी तथा यह भी कहा जा सकता है कि अंतिम रूप से मतवादों का संकलन 454 ई. सन् में हुआ। फिर भी महावीर के समय को आधार मानकर महावीरकालीन मतवादों के साथ तुलनात्मक रूप से व्याख्या अपेक्षित रहेगी। 7. गणधरचर्चा एवं पञ्चमतवाद गण का अर्थ है-'लोगों का समूह' और धर का अर्थ है-'उनका नेतृत्व करने वाला' गणधर कहलाता था। जो तीर्थंकर के पादपीठ में उपविष्ट हो, ज्येष्ठ हो तथा साधु आदि समुदाय को शील-आचार विशेष में स्थापित करते हैं, वे गणधर कहलाते हैं (I. आवश्यक, भाग-2, 589, II. मलयगिरिटीकाआवश्यक की, वर्धमान जीवनकोश, भाग-2, पृ. 178 से उद्धृत [177])। जिनदासगणी के अनुसार 'तीर्थंकर द्वारा स्वयं अनुज्ञात गण को धारण करने वाले गणधर कहलाते हैं (आवश्यकचूर्णि, भाग-1, पृ. 86, भिक्षु आगम विषयकोश, भाग-1, पृ. 232 पर उद्धृत [178])। तथा 8वीं ई. शताब्दी में हरिभद्रसूरि ने सूत्रागम के कर्ता को गणधर कहा (आवश्यक हारिभद्रीयवृत्ति, पृ. 94, भिक्षु आगम विषय कोश, पृ. 332 पर उद्धृत [179])। 1. कल्याणविजयजी, वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना, पृ. 114. 2. वही, पृ. 114, टिप्पण-7.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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