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________________ महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति लिखे गये हैं। उनका कहना है कि ब्राह्मी की वर्णमाला ध्वनि - शास्त्रियों अथवा वैयाकरणों द्वारा वैज्ञानिक उपयोग के लिए स्थापित की गई थी । ' मुनि पुण्यविजयजी का कहना है कि जैन आगम पहले ब्राह्मी लिपि में ही लिपिबद्ध किये गए थे और ब्राह्मी किसी लिपि विशेष का नाम नहीं है बल्कि 18 लिपियों के लिए यह सामान्य नाम प्रयुक्त किया जाता था । यद्यपि इस बात में सच्चाई न भी हो, फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्राकृत भाषा और ब्राह्मी परस्पर सम्बद्ध रही हैं, क्योंकि जैसा प्रज्ञापना में कहा गया है कि भाषा आर्य वे होते हैं, जो अर्धमागधी ( प्राकृत) बोलते हैं और जिनकी लिपि ब्राह्मी होती है (प्रज्ञापना, 1.98 [129 ] ) । ब्राह्मी लिपि ने आधुनिक भारतीय लिपियों के आविर्भाव और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है । ' 37 उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखन कला और ब्राह्मी लिपि का प्रयोग आगम ग्रन्थ और उस युग में व्यापक रूप से प्रचलित था, जिसके फलस्वरूप आगमों का संकलन संभव हो सका। इसके साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति का प्रश्न भारत में लेखन कला की प्राचीनता से सर्वथा अलग है और अगर प्राक् - अशोकीय भारत के लोग किसी लिपि से परिचित थे तो भी उनकी वह लिपि ब्राह्मी रही होगी यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ब्राह्मी लिपि पर तीसरी शती ई. पू. में अविष्कृत होने की छाप है । वह प्राक् - अशोकीय लिपि, जिसकी कल्पना साहित्यिक साक्ष्य की खींचतान करके की जाती है, ब्राह्मी से इतर कोई लिपि रही होगी । कलाएँ जैन आगम तथा उसके व्याख्या साहित्य में कलाओं का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया है । वहाँ पुरुष की 72 कलाओं एवं स्त्रियों की 64 1. J.C. Jain, Life in Ancient India as Depicted in the Jain Canon and Commentaries, p. 232. 2. Ibid, p. 233,f.n. 1. 3. Ibid, p. 233 f.n. 3. 4. Brahmi has played a great role in the evolution of the modern Indian scripts, all of which except the persian script of urdu have originated from it, but the other scripts have disappeared into oblivision during the course of the development of Indian Paleography. J.C. Sikdar, Studies in the Bhagwati Sutra, p. 339.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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