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________________ महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में चक्रवर्ती के दिग्विजय करने के पश्चात् काकिणी रत्न द्वारा अपना नाम पर्वत पर लिखने के उल्लेख मिलते हैं ।' पाणिनी (700 ई.पू. 2 और 500 ई. पू.) ने अपनी अष्टाध्यायी में लिपि, लिपिकार, यवनानी, यूनानी (लिपि) ग्रन्थ और स्वरित ( लेखन में चिह्न) आदि लेखन कला से सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग किया है ( पाणिनी अष्टाध्यायी, 3.2.21, 4.1.49, 1.3.75, 1.3.11 [120 ] ) । लिपि का अर्थ है - अक्षर विन्यास ( भगवतीवृत्ति, 1.1.3, . 5 [121]) | 35 महावीरयुग में 18 लिपियों का उल्लेख मिलता है, यथा - बंभी (ब्राह्मी), जवणालिया अथवा जवणाणिया ( यवनी), दोसाउरिया, खरोट्ठिया ( खरोष्ठी), पुक्खरसारिया (पुष्करसारि), पहराइया, उच्चतरिया, अक्खरपुट्ठिया, गणितलिपि भोगवयता, वेणतिया, निण्हइया, अंकलिपि, गंधव्वलिपि (भूतलिपि), आदंसलिपि (आदर्श), माहेसरीलिपि, दामिलीलिपि ( द्राविड़ी) और पोलिंदीलिपि (I. समवायांग, 18.5, II. प्रज्ञापना, 1.98 [122 ] ) । भगवती में पंच परमेष्ठी के सन्दर्भ में ब्राह्मी लिपि वश्रुत को नमस्कार किया गया है ( भगवती, 1.1.2 - 3 [123] ) । समवायांग तथा प्रज्ञापना में लिपियों के पाठ में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है । 1 बौद्ध साहित्य में ललितविस्तर में भी 64 लिपियों का उल्लेख आया है, जिसमें आदि में ब्राह्मी और खरोष्ठी का उल्लेख है ( ललितविस्तर, 10वाँ अध्याय, पृ. 88, मिथिला विद्यापीठ दरभंगा प्रकाशन [124 ] ) । यह भी विश्रुत है कि ऋषभदेव (आदिनाथ) ने अपने दाहिने हाथ से अपनी पुत्री ब्राह्मी को इस लिपि की शिक्षा दी । आवश्यकनिर्युक्ति (छठी 1. J.C. Jain, Life in Ancient India as Depicted in the Jain Canon and Commentaries, p. 231. 2. ......Panini who, according to Sir R. G. Bhandarkar, lived about 700 B.C., R.C. Majumdar, The History and Culture of the Indian People, (The Age of Imperial Unity), Bharatiya Vidya Bhavan, Mumbai [1st edn., 1951], 6th edn., 1990, Vol. II, p. 2. 3. According to Sir A. Macdonell about 500 B.C., Majumdar, loc. cit., p. 2. 4. प्रज्ञापना में उच्चतरिया के स्थान पर अन्तक्खरिया ( अन्ताक्षरी), उयन्तरिक्खिया या उयन्तरक्खरिया, आदंस के स्थान पर आयास का उल्लेख है । समवायांग में खरसाहिया लिपि का उल्लेख है, वहीं प्रज्ञापना में इसके स्थान पर पुक्खरसारिया पाठ मिलता है। समवायांग में जवणालिया पाठ है, किन्तु प्रज्ञापना में 'जवणाणिया' ।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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