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________________ 8 2. जात्यार्य 3. कुलार्य 4. कर्मार्य 5. शिल्पार्य 6. भाषार्य 7. ज्ञानार्य 8. दर्शनार्य 9. चारित्र जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद नगर, xvii. वरण (देश) अच्छपुरी, xviii. दशार्ण (देश) मृत्तिकावती (नगरी), xix. चेदि (देश) शुक्तिमती xx. सिंधु सौवीर देश में वीतभय नगर, xxi. शूरसेन (देश) में, मथुरा (नगरी), xxii. भंग (जनपद में) पावापुरी (अपापा नगरी), xxiii पुरिवर्त्त जनपद में माषा नगरी, xxiv. कुणाल देश में श्रावस्ती सेहटमेहट, xxv. लादेश में कोटिवर्ष नगर और 25 1/21⁄2 केकयार्द्ध जनपद में श्वेताम्बिका नगरी 6 प्रकार के जात्यार्य - 1. अम्बष्ठ, ii. कलिन्द, iii. वैदह, iv. वेदग, v. हरित, vi. चुं 6 प्रकार के कुलार्य - 1. उग्र, ii. भोग, iii. राजन्य, iv. इक्ष्वाकु, v. ज्ञात और vi. कौरव्य अनेक प्रकार के कहे गए हैं- दोषिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैतालिक, भाण्डवैतालिक, कौलालिक और नरवाहनिक । अन्य आर्यकर्म वालों को कर्मार्य समझना चाहिए । शिल्पार्य भी अनेक प्रकार के कहे गए हैंतुन्नाक (दर्जी), तन्तुवाय ( जुलाहे ), पट्टकार, दृतिकार ( चमड़ा कारीगर), वरण वरुट्ट (पिच्छी) बनाने वाले, छर्विक (चटाई आदि बनाने वाले), (काष्ठ पादुकाकार) लकड़ी का काम करने वाले, इसी प्रकार अन्य जितने भी आर्य शिल्पार्य हैं, उनको आर्य शिल्पार्य समझना चाहिए। वे जो अर्द्धमागधी भाषा बोलते हैं, और जहाँ ब्राह्मी लिपि प्रचलित है, ब्राह्मी लिपि के अठारह प्रकार के लेख विधान पांच प्रकार के कहे गए हैं- 1. अभिनिबोधिक, ii. श्रुत, iii. अवधि, iv. मनः पर्यव, v. केवलज्ञानार्य । मूलतः दो प्रकार के हैं - i. सरागदर्शनार्य, ii. वीतरागदर्शनार्य भी मूलतः दो प्रकार के हैंi. सूक्ष्मसम्पराय सराग चारित्रार्य, ii. बादरसम्पराय चारित्रार्य । 1. विस्तृत उल्लेख इसी अध्याय के लिपि - विवेचन के अन्तर्गत दिया है ।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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