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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद अन्त में उन सभी के प्रति धन्यवाद करना चाहूँगी, जिनका यहां उल्लेख नहीं किया जा सका, किन्तु प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में मुझे सहयोग प्राप्त हुआ । xxvi यद्यपि मैंने प्रस्तुत शोध विषय का बहुत गहनता से अध्ययन किया, निर्धारित शोध उद्देश्य और शोध - प्रविधि के आधार पर ही पूर्णतः ध्यान केन्द्रित कर ही कार्य करने की कोशिश की, तथापि यह बहुत संभव है कि इस शोध में कुछ विषयों पर अत्यल्प लिखा गया हो, कुछ विषयों पर अधिक भी लिखा गया हो, कुछ विषय अस्पष्ट भी रह गये हों । यह भी हो सकता है अनजाने में कुछ अन्यथा भी लिखा गया हो । मानुषदोष, स्वभावदोष, स्मृतिदोष, कालदोष आदि के कारण अल्पबुद्धि मनुष्य की कृति में अनेक प्रकार की त्रुटियां अवश्यंभावी है। यह शोध ग्रन्थ भी इस दृष्टि से अपवाद नहीं होगा। ( डॉ. वन्दना मेहता)
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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