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________________ xxiv जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद प्रस्तुत अध्याय के निष्कर्ष को 'उपसंहार' के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो शोध ग्रन्थ की उपादेयता और मौलिकता की ओर इंगित करता है। अध्यायों के विवेचन बाद सभी अध्यायों के मूल सन्दों को, प्रत्येक अध्याय के अनुसार ग्रन्थ-सूची से पूर्व टिप्पण (Notes and References) बिन्दु के अन्तर्गत रखा है। जिनकी संख्या 613 है, और सबसे अन्त में ग्रंथ-पञ्जिका प्रस्तुत की गई। ___ सर्वप्रथम मैं अपने इष्ट के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिनकी कृपा ने मुझमें इतना सामर्थ्य, साहस और आत्म-विश्वास उत्पन्न किया तथा मैं इस शोधकार्य में प्रवृत्त होकर इसे पूर्ण कर सकी। मैं उनके पादपंकज में नतमस्तक होकर प्रणाम करती हूँ। उन समस्त पूर्वाचार्यों, ग्रंथकारों एवं सम्पादकों का हृदय से नमन कर आभार अभिव्यक्त करती हूँ, जिनके ग्रंथों से प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष ज्ञान-मुक्ताओं को संजोकर शोध रूपी ज्ञान यज्ञ की पूर्णाहुति दे सकी। अपने इस शोध कार्य की सम्पूर्णता के लिए मैं सर्वप्रथम तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति श्रद्धानत हूं जिनकी प्रज्ञा रश्मियों से मुझे सदैव ऊर्जा मिलती रही। वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुस्तक के आरम्भ में आशीर्वचन प्रदान कर असीम कृपा की और पुस्तक की गरिमा को बढ़ा दिया। जिसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। महाश्रमणी साध्वीश्री कनकप्रभाजी, आगम मनीषी मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी, समणी मंगलप्रज्ञाजी (वर्तमान साध्वी मंगलप्रज्ञाजी), समणी नियोजिका मधुरप्रज्ञाजी, कुसुमप्रज्ञाजी, चैतन्यप्रज्ञाजी, मल्लीप्रज्ञाजी, ऋजुप्रज्ञाजी, संगीतप्रज्ञाजी, विशदप्रज्ञाजी, रोहिणीप्रज्ञाजी, आगमप्रज्ञाजी आदि समणीवृन्द को मेरी भाव वंदना, जिनके आशीर्वचनों से मैं अपने कार्य के प्रति सदा प्रेरित होती रही हूँ। ___ मैं अपनी विशेष कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहूंगी प्राकृत भाषा के मूर्धन्य विद्वान् प्रो. सत्यरंजन बनर्जी (प्राकृत विद्या मनीषी) के प्रति, जिन्होंने पाश्चात्य शोध-प्रविधि से अध्ययन करने के प्रति प्रोत्साहित किया एवं उसमें मुझे प्रवेश कराया साथ ही समय-समय पर कुशल मार्गदर्शन प्रदान किया। कृतज्ञता ज्ञापन मुनिश्री दुलहराजजी स्वामी (आगम मनीषी) के प्रति, जिन्होंने शोधकार्य में आद्योपांत मार्गदर्शन प्रदान किया। यह शोधकार्य अथ से
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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