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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद क्रिया के विद्यमान होने पर भी प्रज्ञाशून्य इतर मतावलम्बी अक्रियावाद का आश्रय लेते हैं—उसमें विश्वास करते हैं (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 510 [528])। 202 अक्रियावादी आत्मा का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षणस्थायी है । वे कहते हैं सूर्य न उगता है और न अस्त होता है । चन्द्रमान बढ़ता है और न घटता है। नदियां बहती नहीं हैं और हवा नहीं चलती (सूत्रकृतांग, 1.12.7 [ 529] ) | यह सिद्धान्त बौद्धों के क्षणिकवाद दर्शन से समानता रखता है, क्योंकि जब प्रत्येक वस्तु एक क्षण के बाद नष्ट हो जाती है तो क्रिया कैसे हो सकती है? दशाश्रुतस्कन्ध (छठी दशा) में अक्रियावाद का वर्णन इस प्रकार मिलता है - नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि, नोसम्यग्वादी, नोनित्यवादीउच्छेदवादी, नोपरलोकवादी - ये सभी अक्रियावादी हैं । इनके मतानुसार इहलोक नहीं है, परलोक नहीं है, माता नहीं है, पिता नहीं है, अरिहंत नहीं है, चक्रवर्ती नहीं है, बलदेव नहीं है, वासुदेव नहीं है, नरक नहीं है, नैरयिक नहीं है, सुकृत एवं दुष्कृत के फल में अंतर नहीं है, सुर्चीण कर्म का फल अच्छा नहीं होता, दुश्चर्ण कर्म का फल बुरा नहीं होता, कल्याण और पाप अफल है, पुनर्जन्म नहीं है, मोक्ष नहीं है, अर्थात् समस्त क्रियाएँ फलशून्य हैं ( दशाश्रुतस्कन्ध, 6.3 [530])। अभयदेवसूरि के मत से केवल चित्तशुद्धि को आवश्यक एवं क्रिया को अनावश्यक मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं । वे बौद्ध दार्शनिक हैं (भगवतीवृत्ति, पत्र - 944 [531] ) किन्तु सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में बौद्धों को क्रियावादी कहा है (सूत्रकृतांग, 1.1.1.51 [532 ] ) । तथा अंगुत्तरनिकाय में गौतम बुद्ध ने स्वयं को अक्रियावादी माना है - सिंह एक कारण है, जिस कारण से मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला (उचित विश्लेषण करता हुआ) यह कह सकता है कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है। अक्रियावाद की देशना करता है और अपने श्रावकों को अक्रियावाद का अभ्यास कराता है ( अंगुत्तरनिकाय, अट्ठकनिपात, सीहसुत्त, 8.9, पृ. 373 बौ.भा.वा. प्र. [533] ) । इस प्रकार अक्रिय आत्मा को मानने वाले वे, तत्त्व को नहीं जानते हुए नाना प्रकार के सिद्धान्त प्रतिपादित करते हैं और उन्हें स्वीकार कर बहुत सारे मनुष्य इस संसार में भ्रमण करते हैं । जिस प्रकार अंधा मनुष्य नेत्रहीन होने के कारण प्रकाश के होने पर रूपों को नहीं देखता, इसी प्रकार अक्रिय - आत्मवादी
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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