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________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद 193 परिव्राजक परिव्राजकों तथा उनकी शिष्य परम्परा के बारे में पंचम अध्याय 'सांख्यमत' के अन्तर्गत उल्लेख किया जा चुका है। आजीविक आजीविक श्रमणों के बारे में विस्तृत विवेचन प्रस्तुत शोध के षष्ठ अध्याय 'नियतिवाद' में किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त कई प्रव्रजित श्रमणों के भी उल्लेख आगमों में मिलते हैं, जैसे-1. कान्दर्पिक-हंसी मजाक करने वाले, 2. कौकुचिक-शरीर के अंगों से कुत्सित चेष्टाएँ कर हंसाने वाले, 3. मौखरिक-उटपटांग बोलने वाले, 4. गीतरतिप्रिय-गीत में विशेष अभिरुचि वाले, 5. नर्तनशील-नाचने की प्रकृति वाले आदि (औपपातिक, 95 [493])। उत्तराध्ययन में वत्कल धारण करने वाले, चर्म धारण करने वाले, जटा रखने वाले, संघाटी रखने वाले और मुंड रहने वाले-इन विचित्र लिंगधारी भिक्षुओं का उल्लेख मिलता है, इन्हें दुष्टशील शब्द से उपमित किया गया है (उत्तराध्ययन, 5.21 [494])। अनुयोगद्वार में कुछ अन्य संन्यासियों का उल्लेख भी मिलता है-चरक (भिक्षा के लिए घूमने वाले), चीरिक (वस्त्र धारण करने वाले अथवा वस्त्रमय उपकरण रखने वाले), चर्मखंडिक (चर्मवस्त्रधारी और उसी के उपकरण रखने वाले), भिक्षाजीवी या भिक्षोण्ड (केवल भिक्षा से ही जीवन यापन करने वाले अन्य से नहीं), शैव या पंडुरंग (भस्म से लिप्त शरीर वाले), गौतम (जो संन्यासी बैलों को कौड़ियों व माला से सजाते हैं, नमस्कार करना सिखाते हैं और उनसे भिक्षा प्राप्त करते हैं), गोव्रती (गाय की चर्या का अनुसरण करने वाले, गाय के साथ चलते, उठते, बैठते एवं उसी की तरह खाते पीते हैं), गृहधर्मी (गृहस्थ धर्म को श्रेयस्कर मानकर उसका पालन करने वाले), धर्मचिन्तक (याज्ञवल्क्य गौतम आदि ऋषियों के द्वारा निर्मित एवं आचरित धर्म संहिताओं पर चिन्तन करने वाले एवं चलने वाले), अविरुद्ध (वैनयिक मत में आस्था रखने वाले), विरुद्ध (अक्रियावादी दर्शन में आस्था रखने वाले, क्रियावादियों, अज्ञानवादियों और विनयवादियों के विरुद्ध रहने वाले), वृद्धश्रावक (ये लोग प्रायः वृद्धावस्था
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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