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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद मंदिर, अहमदाबाद, 1968 उपयोग में लिये गये हैं। जहां कहीं अन्य प्रकाशन उपयोग में लिये उनके आगे यथासंभव उल्लेख किया गया है। ___ इसी तरह बौद्ध त्रिपिटकों के मूल सन्दर्भ में मुख्य रूप से विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी प्रकाशन उपयोग में लिया है। अतः टिप्पण में तद्-तद् त्रिपिटकों के सन्दर्भो को इसी प्रकाशन का जाना जाए। अन्य प्रकाशनों के उल्लेख के समय टिप्पण में तद्-तद् स्थल पर यथासंभव उल्लेख कर दिया है। ब्राह्मण ग्रन्थों में मुख्य रूप से उपनिषदों के मूल सन्दर्भ में उपनिषत्संग्रह, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1984, ईशानि नो उपनिषद्, मोतीलाल जालान, गीताप्रेस, गोरखपुर, 1969 तथा छान्दोग्योपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद्, गीताप्रेस, गोरखपुर, 1965, 1968, का उपयोग किया है। महाभारत के मूल सन्दर्भ में रामचन्द्र शास्त्री द्वारा संपादित संस्करण, ओरिण्यटल बुक्स रीप्रिंट कॉरपोरेशन, नई दिल्ली, 1979 का ही मुख्यतः उपयोग किया गया अतः तद्-तद् स्थल पर इसी प्रकाशन को जाना जाए तथा अन्य प्रकाशन के उपयोग लेने की स्थिति में उनके आगे उन प्रकाशनों का उल्लेख करने का प्रायः प्रयास किया गया। इन प्रकाशनों का प्रथम बार पूरी सूचना के साथ उल्लेख किया। जैसे-(ब्यावर प्रकाशन), (बौद्ध भारती वाराणसी प्रकाशन), (चौखम्बा प्रकाशन), (श्री अमर जैन शोध संस्थान, सिवाना प्रकाशन), (मिथिला विद्यापीठ दरभंगा प्रकाशन) इत्यादि किन्तु उनका उल्लेख दुबारा होने पर पुनः उनका उल्लेख संक्षिप्त रूप जैसे (ब्या.प्र.), (बौ.भा.वा.प्र.), (चौख.प्र.), (सि.प्र.) (मि.विद्या.द.प्र.) इत्यादि रूप में किया है। इन सभी मूल सन्दर्भो के सम्बन्ध में खास बात यही है कि जैन विश्वभारती तथा जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रकाशन के जैन आगम इस शोध में बहुलतया उपयोग में लिये हैं, उनके नाम प्राकृत में हैं, यथा-आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, भगवई इत्यादि। किन्तु समस्त भाषाओं की असमानता दूर करने के लिए एवं साम्यता के लिए यह समस्त क्षेत्रों की प्रविष्टि प्रतिपादित यानी विभक्तत्यन्त रहित मूल शब्दों का ही प्रयोग किया है। इसमें Winternitz ने History of Indian Literature, Vol.-II में 45 आगमों के जो नाम निर्धारित किये, उसी के अनुसार और वही नाम यहां रखे हैं। खास बात यही है कि उन्होंने संस्कृत नामों का उपयोग किया है, किन्तु यहां विसर्ग रहित
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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