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________________ 172 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद भगवती में गोशालक के बारे में उल्लेख आता है कि एक समय गोशालक के पास छह दिशाचर आए (भगवती, 15.1.3 [444])। वे छहों अपनी बुद्धि से पूर्वगत आठ महानिमित्तों का विचार करते थे और इनके द्वारा प्राणियों के जीवन-मरण, सुख-दुःख और लाभ-अलाभ की जानकारी होती हैं। इन्हीं अष्टांगनिमित्त के उपदेश के द्वारा गोशालक ने यह सिद्धान्त स्थापित किया कि सब प्राणियों के लिए ये छः बातें अनतिक्रमणीय है-जीवन मरण, सुख-दुःख, लाभ-अलाभ और वह इन छः बातों के लिए जनता को उत्तर देने लगा और जिन न होते हुए भी स्वयं को जिन अर्हत् आदि के रूप में प्रकट करने लगा (भगवती, 15.4-6 [445])। दूसरा-आजीवक संघ की तपस्या/साधना उत्कृष्ट थी ऐसा जैन और बौद्ध स्रोतों से प्रमाणित होता है। स्थानांग में आजीवकों के चार प्रकार के विशिष्ट तपों-उग्रतप (तीन दिन का उपवास), घोरतप, रसनि¥हण (घृत आदि रस का परित्याग) तथा जिह्वेन्द्रिय प्रतीसंलीनता- मनोज्ञ और अमनोज्ञ आहार में राग-द्वेष रहित प्रवृत्ति का उल्लेख मिलता है (स्थानांग, 4.350 [446])। वहीं संयुत्तनिकाय में मंखली गोशालक को कठिन तपस्या तथा पापजुगुप्सा से संयत, मौनी, कलहत्यागी शान्तचित्त एवं दोषों से विरत सत्यवादी के रूप में प्रस्तुत किया है (संयुत्तनिकाय, I.2.3.30, पृ. 110 बौ.भा.वा.प्र. [447])। ___ इस प्रकार तप और निमित्त विद्या के प्रभाव से मंखलीगोशाल की तरफ लोग खिंचे आते थे। निःसंदेह उसकी निमित्त विद्या का ही प्रभाव था। 7. मंखलिगोशाल के अन्य सिद्धान्त संसार शुद्धिवाद गोशालक न केवल नियतिवादी था अपितु कुछ अन्य सिद्धान्तों में भी उसकी आस्था थी। नियतिवाद के समान ही उसकी एक अन्य धारणा 'संसार-शुद्धिवाद' की थी। गोशालक का संसार-विशुद्धिमार्ग बहुत लोकप्रिय हुआ। इस मान्यता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को संसार में निश्चित अवधि के लिए दुःख भोगना ही पड़ता है, जिसके अनुसार चौदह लाख छियासठ सौ प्रमुख योनियाँ हैं, पांच सौ पांच कर्म, तीन अर्धकर्म (जो केवल मन से होते
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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