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________________ 154 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद गोशालक से पहले भी था। वह उसका प्रवर्तक नहीं था। उस सम्प्रदाय का मूल स्रोत भी प्राचीन श्रमण परम्परा से भिन्न नहीं है। हम इस बात के विश्वासी नहीं हैं कि आजीवक की उत्पत्ति का मूल वैदिक और ब्राह्मण स्रोत हैं।' वस्तुतः धर्म का अवतरण जब से संस्कृति में हुआ है, तब से ही नियतिवाद की अवधारणा उसके समकक्ष चल रही है। कुछ ऐसी प्राचीन अवधारणाएँ थी जैसे बेबिलोनियन (Babylonians), हिब्रो (Hebrew)-इनकी विचारधाराओं में भी हमें ऐसा लगता है कि मनुष्य का भाग्य ईश्वर के अधीन है और हम अपनी करणी से ईश्वर को भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर-पूर्वी ज्योतिषशास्त्र के विकास के आरम्भिक वर्षों के ज्योतिष के आधार पर व्यक्ति का भविष्य अगर बताना हो तो वह भी सुनिश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता अर्थात् निश्चित नहीं किया जा सकता। फिर भी कुछ ऐसे कारण थे जिनके कारण नियतिवादी मान्यताओं को बल मिलता रहा। कृषि का विनाश होना, सूखा पड़ना और युद्ध में हारना-ये सब नियति के कारण हैं, ऐसा होना और मंखली गोशाल का व्यक्तिगत ज्ञान (अष्टांग निमित्त आदि)-ये सब तत्त्व मिलकर आजीवक सम्प्रदाय को पूर्ण रूप प्रदान करते हैं। जिसने भारतीय इतिहास में 2000 वर्ष तक अपना छोटा-सा स्थान बनायें रखा और अपने अनुयायियों की आध्यात्मिक जरूरतों को पूर्ण करता रहा है। मौर्यवंश (4-2 ई.पू.) के दौरान कुछ समय तक इस मत की उपस्थिति के बाद यह धीरे-धीरे क्षीण हो गया। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि इसके कुछ अनुयायी वर्तमान कर्नाटक में 14 वीं ई. शताब्दी तक मौजूद थे। 2. मंखली और आजीवक शब्द विमर्श मंखली शब्द मस्करी से बना है ऐसा प्रचलित है। पाणिनी ने इसका सामान्य अर्थ परिव्राजक से लिया है (पाणिनी व्याकरण, 6.1.154 [411])। वेणु के अर्थ में 'मस्कर' और परिव्राजक के अर्थ में 'मस्करी' शब्द सिद्ध किए। 1. Our own views on the origine of the Ajīvikās have already been expressed we do not believe that it derieved from Vedic or Brāhamaņical sources, History and Doctrines of the Ajīvikas, p. 98. 2. Ibid, pp. 6-7.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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