SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सांख्यमत 139 उक्त विवेचन के आधार पर आत्मषष्ठवाद की मुख्य मान्यताएँ इस प्रकार की जा सकती हैं 1. पांच महाभूत अचेतन हैं तथा छठा पदार्थ आत्मा है, जो सचेतन है। 2. आत्मा तथा लोक दोनों शाश्वत हैं। 3. छहों पदार्थ सहेतुक तथा अहेतुक, दोनों ही प्रकार से विनष्ट नहीं ___ होते। 4. असत् की कभी उत्पत्ति नहीं होती तथा सत् का कभी नाश नहीं होता। 5. सभी पदार्थ सर्वथा नित्य हैं। आत्मषष्ठवाद को शीलांक ने वेदवादी सांख्यों का मत बताया अर्थात् सांख्यों को वेदवादी कहा है। यहां यह विशेष ध्यातव्य है कि वैदिक परम्परा में छः दर्शन स्वीकृत हैं-उत्तर मीमांसा, पूर्व मीमांसा, सांख्य, वैशेषिक और न्याय। ऐसा प्रतीत होता है कि इन स्वीकृत छः दर्शनों के आधार पर शीलांक ने सांख्यों को वेदवादी कहा है। किन्तु सांख्य को वेदवादी कहने से यह भी प्रश्न उपस्थित होता है कि अवेदवादी सांख्य भी थे क्या? वस्तुतः सांख्य दर्शन, जैन और बौद्ध इन अवैदिक दर्शनों से कुछ अर्थों में साम्यता रखता है। सांख्य दर्शन द्वैतवादी है। जैन दर्शन भी द्वैतवादी है। सांख्यदर्शन के प्रकृति और पुरुष की तुलना जैनदर्शन के पुद्गल और जीव से की जा सकती है। इस प्रकार दोनों दर्शन अनेकात्मवादी हैं।' वेदान्त के अतिरिक्त अन्य वैदिक-दर्शन अद्वैत पक्ष को मान्यता नहीं देते हैं। इस प्रकार उन पर वेद-बाह्य विचारधारा का प्रभाव सूचित होता है। हो सकता है प्राचीन सांख्य-परम्परा और जैन-परम्परा ने इस विषय में मुख्य रूप से भाग लिया होगा। इतिहासकार इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित हैं कि प्राचीन काल में सांख्य भी अवैदिक दर्शन माना जाता था। यह भी संभव है कि किसी समय यह दर्शन वेद का अनुसरण नहीं करता हो परन्तु बाद में उसे वैदिक रूप दे दिया गया हो। 1. आचार्य महाप्रज्ञ, इक्कीसवीं शताब्दी और जैन धर्म, जैन विश्वभारती प्रकाशन, लाडनूं, 2002, पृ. 166.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy