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________________ 136 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद शीलांक ने भी इसको सांख्य का मत बताया है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 14 [370]), क्योंकि 'अकर्ता निर्गुणो भोक्ता आत्मा कपिल दर्शने' यह सांख्य दर्शन मान्य उक्ति है। सांख्य दर्शन में आत्मा अकर्ता-कर्तृत्वरहित, निर्गुण (सत्व, रजस्, तमस गुण रहित), तथा अभोक्ता-कर्मों का फल भोगने से विवर्जित है (I. सांख्यकारिका, 20, II. षड्दर्शनसमुच्चय, 41 [371])। ___जिनदासगणी के अनुसार आत्मा में कर्तृत्व नहीं है। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा है कि आत्मा सर्वथा, सर्वत्र और सर्वकाल में सब कुछ नहीं करती, इसलिए वह अकर्ता है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 27 [372])। शीलांक के अनुसार आत्मा अमूर्त, नित्य और सर्वव्यापी है, इसलिए उसमें कर्तृत्व उत्पन्न नहीं होता-वह कर्ता नहीं हो सकती (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 14 [373])। .. जैनसूत्रों में अकारकवाद इस सिद्धान्त के आचार्य का नाम उल्लेखित नहीं है किन्तु बौद्ध साहित्य में पूरणकाश्यप' के एक सिद्धान्त का उल्लेख मिलता हैं। उसके सिद्धान्तानुसार, जैसे-“अगर कोई क्रिया करे, कराये, छेदन करते-कराते, पकाते-पकवाते, शोक करते, परेशान होते या करते, चलते-चलाते, प्राणों का अतिपात करते-कराते, बिना दिया लेते, चोरी करते, गांव लूटते, परस्त्रीगमन करते, झूठ बोलते हुए भी पाप नहीं होता। तीक्ष्ण धार वाले चाकू से इस पृथ्वी के प्राणियों के मांस का एक खलिहान तथा मांस का पुंज भी क्यों न बना दे तो भी उसके द्वारा पाप नहीं होगा, पाप का आगम नहीं होगा। यदि घात करते-कराते, पकाते-पकवाते, गंगा नदी के दक्षिण तट पर भी चला जाये तो उसके कारण पाप नहीं होगा, पाप का आगम नहीं होगा। दान देते- दिलाते, यज्ञ करते-कराते, गंगा के उत्तर तीर पर भी आ जाए तो इसके कारण उसको पुण्य नहीं होगा, पुण्य का आगम नहीं। दान से, दमन से, संयम से और सत्य-वचन से पुण्य नहीं होता, पुण्य का आगम नहीं होता(दीघनिकाय, सीलक्खन्धवग्गपालि, I.2.166 पृ. 46-47 [374])। पूरणकाश्यप के उक्त मत में स्पष्टतः अक्रियावाद की स्थापना हो रही है अतः अनुमान लगाया जा सकता है कि सूत्रकृतांग का अकारकवाद पूरणकाश्यप का भी मत हो सकता। 1. पूरणकाश्यप भगवान् महावीर के युग के लोक प्रसिद्ध, सम्माननीय आचार्य थे तथा मगध के राजा अजातशत्रु के समकालीन थे। वे अपने संघ के मुखिया और संस्थापक तथा अक्रियावाद के समर्थक थे।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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