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________________ 128 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद कौन है? ध्यान कौन लगाता है? आर्यमार्ग के फल निर्वाण का प्रत्यक्ष कौन करता है? तब तो आपका कोई गुरु भी नहीं, न आप उपसम्पन्न हैं? आप कहते हैं-'मुझे नागसेन नाम से बुलाया जाता है। अन्ततः यह 'नागसेन' है क्या? क्या केश, नख, दाँत, त्वचा, मांस आदि से युक्त शरीर 'नागसेन' है या फिर रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान 'नागसेन' है? या इनसे अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु?" नागसेन ने सबका उत्तर एक 'ना' में दिया। वितण्डावादी मिलिन्द इस संक्षिप्त उत्तर से चकरा जाता है। उसे त्रस्त देखकर भदन्त नागसेन ने रथ की उपमा देकर अपने उत्तर का स्पष्टीकरण किया। उन्होंने कहा-“राजन्! आप यहाँ जिस रथ से आये हैं उस रथ के बांस, धुरा, पहिये, जूआ और चाबुक आदि रथ नहीं होते, अपितु इन भिन्न-भिन्न अवयवों पर 'रथ' का अस्तित्व निर्भर है। 'रथ' एक शब्द है जो केवल व्यवहार के लिये है। उसी तरह व्यक्ति ‘नागसेन' का अस्तित्व भी रूप, वेदना, संज्ञा, विज्ञान, संस्कार-इन पांचों स्कन्धों पर आधारित है। 'नागसेन' शब्द केवल व्यवहार मात्र है। परमार्थतः 'नागसेन' नामक कोई व्यक्ति उपलब्ध नहीं होता।" जैसे अवयवों के आधार पर 'रथ' संज्ञा होती है, उसी तरह स्कन्धों के होने से एक सत्व (=जीव) समझा जाता है (संयुत्तनिकाय, V.10.6 बौ.भा.वा.प्र. [358])। __इस प्रकार से समाधान पाकर मिलिन्द राजा अभिभूत हो जाते हैं और आगे अन्य प्रश्नों के समाधान के लिए शास्त्रार्थ करने लग जाते हैं। वस्तुतः बौद्ध दर्शन में आत्मा को स्वतन्त्र द्रव्य नहीं माना है। इन पांचो स्कन्धों के समुदाय का नाम आत्मा है। प्रत्येक आत्मा नाम रूपात्मक है, रूप से तात्पर्य शरीर के भौतिक भाग से और नाम से तात्पर्य मानसिक प्रवृत्तियों से है। वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान-ये नाम के भेद हैं। इन स्कन्धों की परम्परा निरन्तर चलती रहती है, आत्मा के अभाव में भी जन्म, मरण और परलोक की व्यवस्था निरन्तर सतत रहती है। बौद्धदर्शन में न केवल आत्मा को अपितु किसी वस्तु को स्थायी नहीं माना है। जो भी सत्ता में है, सभी क्षणभंगुर है। सत् में नित्यत्व घटित नहीं होता और वस्तुओं के नित्य होने की कल्पना से कार्यों की उत्पत्ति सिद्ध नहीं 1. मिलिन्दपज्हपालि, संपा. स्वामी द्वारिकादास शास्त्री, भूमिका, पृ. IXX-XX.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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