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________________ एकात्मवाद 113 2. एक मिट्टी का पिण्ड कुम्हार के चाक पर आरोपित होने पर भिन्न-भिन्न प्रकार से परिणत होता हुआ घट के रूप में निवर्तित होता है। उसी प्रकार एक ही आत्मा नाना रूपों में दृष्ट होता है। इस बात के स्पष्टीकरण में चूर्णिकार ब्रह्मबिन्दु उपनिषद् का एक श्लोक उद्धृत करते हैं-एक ही भूतात्मा सब भूतों में व्यवस्थित है। वह एक होने पर भी जल में चन्द्र के प्रतिबिम्ब की भांति नाना रूपों में दिखाई देती है (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 25 [334])। एकात्मवाद सिद्धान्त के नाना रूपों में अभिव्यक्त होने की बात जैसा कि कठोपनिषद् में कहा गया है-जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट एक ही अग्नि नाना रूपों में उनके समान रूप वाला सा, हो रहा है। जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट एक ही वायु नाना रूपों में उनके समान रूप वाला सा हो रहा है, वैसे ही समस्त प्राणियों का अन्तरात्मा परब्रह्म एक होते हुए भी विभिन्न रूपों में उन्हीं के जैसे रूपवाला और उनके बाहर भी है (तुलना, कठोपनिषद्, 2.2:9-10 [335])। घटित हो रहा है। वेदान्त दर्शन का प्रमुख सिद्धान्त है-इस जगत् में सब कुछ ब्रह्म (शुद्ध आत्मा) रूप है, उसके अतिरिक्त भिन्न दिखाई देने वाले पदार्थ कुछ नहीं हैं। अर्थात् चेतन-अचेतन (पृथ्वी आदि पंचभूत तथा जड़ पदार्थ) जितने भी पदार्थ हैं, वे सब ब्रह्म (आत्म) रूप हैं (I. ऋग्वेद, 10.90.2, II. छान्दोग्योपनिषद्, 3.14.1, III. मैत्र्युपनिषद्, 4.6.3, IV. श्वेताश्वतरोपनिषद्, 3.15, V. मुण्डकोपनिषद् शंकरभाष्य, 1.2.12 [336])। यही बात ‘एगेकसिणे लोए विण्हू'। इस पद में दृष्टिगोचर हो रही है-भिन्नता दर्शाने वाले पदार्थों को भी वे दृष्टान्त द्वारा आत्मरूप सिद्ध करते हैं। उपनिषदों के इस दर्शन को विन्टरनित्ज आज की दार्शनिक शैली में इस प्रकार कहते हैं- "विश्व भगवान् है और भगवान् मेरी आत्मा है।" ब्रह्म सब कुछ है अथवा अन्य शब्दों में कहे कि ब्रह्म और आत्मा अभिन्न है। इस बात की उपनिषदों में विस्तार से व्याख्या मिलती है- (वह ब्रह्म) 1. ...which would mean in our philosophical way of expression : "The world is God, and God is my soul." Winternitz, History of Indian Literature, Vol.-I, p. 229.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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