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________________ 95 - एकात्मवाद कहते हैं (द्रव्यसंग्रह, सूत्र 57 की टीका, पृ. 186 [ 254 ] ) | मोनियर - विलियम्स भी अत् (अतत् और अतमान) धातु से आत्मा की व्युत्पत्ति कहते हैं, जिसकी व्याख्या करते हैं, जो सतत रूप से गमन करता है, चलता है वह आत्मा है । ' कुछ विद्वान आत्मा शब्द की व्युत्पत्ति अन् 'सांस लेना' धातु से मानते हैं, जिसकी व्याख्या करते हैं - निःश्वास, श्वास, आत्मा, आत्मभाव । डूसन ( Deussen ) आदि विद्वान् इसकी उत्पत्ति दो धातुओं से करते हैं, जिसका मूल अर्थ है'यह मैं' | 2 1 वस्तुतः आत्मा केवल दार्शनिक शब्द ही नहीं अपितु संस्कृत भाषा का बहुप्रचलित शब्द है, जिसका अर्थ पूर्ण रूप से स्पष्ट है । जो प्रायः निजवाचक सर्वनाम के रूप में आत्मभाव के अर्थ में प्रयुक्त होता है । संज्ञा के रूप में यह मनुष्य के अपने व्यक्तिगत रूप के लिए, बाह्य संसार की तुलना में अपने शरीर के लिए और कभी-कभी अंगों की तुलना में धड़ के लिए, परन्तु अधिकांशतः शरीर की तुलना में आत्मा अथवा वास्तविक 'अन्तः सत्ता' के लिए प्रयुक्त होता है । " आचारांगकार के अनुसार जो विज्ञाता है, वह आत्मा है और जो आत्मा है, वह विज्ञाता है, क्योंकि वह जानता है, इसलिए आत्मा है । यहाँ ज्ञायक स्वभाव वाले को आत्मा कहा है ( आचारांगसूत्र, 1.5.5.104 [255] ) । टीकाकार शान्त्याचार्य ( 11वीं ई. शताब्दी) के अनुसार जो विविध भावों में परिणत होती है, वह आत्मा है (उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पृ. 52 [256])। लगभग यही परिभाषा भारतीय दर्शन परिभाषा कोश में आई है, अतति सततं गच्छति व्याप्नोति वा आत्मा ।' अर्थात् जो सर्वव्यापी हो, वह आत्मा है । 1. अत् (Naigh, atat or atamāna) to go constantly, walk, run. Sanskrit English Dictionary, by Monier-William [Oxford, 1899], Indian edn., 2004, by Munshiram Manoharlal Publisher, Delhi, p. 12. 2. Maurice Winternitz, History of Indian Literature, Vol. I, pp. 230-231. 3. Atman is not simply a philosophical concept but a word frequently occurring in Sanskit whose meaning is fully clear. It means "self", is used often as a reflexive pronoun and means as a noun one's own person, one's own body as against the eternal world, sometimes the trunk as against the limbs, but most frequently it means the soul, the actual soul as against the body. Winternitz, Ibid, p. 231. 4. देखें, निरुक्तकोश, पृ. 18. 5. तुलना, भारतीय दर्शन परिभाषा कोश, संपा. दीनदयाल शुक्ल, प्रतिभा पब्लिकेशन, दिल्ली, 1993, पृ. 42.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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