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________________ पञ्चभूतवाद 91 पंचभूतों का गुण चैतन्य नहीं है नियुक्तिकार भद्रबाहु के अनुसार पंचमहाभूतों का गुण चैतन्य नहीं होने से उससे उत्पन्न आत्मा में भी चैतन्य नहीं होगा (सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-33 [251])। पृथ्वी आदि पाँचभूतों के आपस में मिलने पर अथवा देह के रूप में परिवर्तित हो जाने पर उनसे चैतन्य आदि उत्पन्न नहीं हो सकते। जिसका गुण चैतन्य से अन्य है, उन पृथ्वी आदि पंचभूतों के संयोग से चेतनादि गुण कैसे प्रकट हो सकते हैं? 9वीं शताब्दी के टीकाकार शीलांक के मत में पृथ्वी आदि के अपने-अपने गुण हैं, जो चैतन्य से भिन्न हैं। पदार्थों का आधार बनना, कठिनता का होना पृथ्वी का गुण है। जल का गुण द्रवत्व या तरलपन है, अग्नि का गुण पक्तृत्व-पाचन या पचाने की शक्ति है। वायु का चलन-गतिशीलता गुण है, आकाश का गुण अवगाह-अवकाश या स्थान देश है। ये गुण चेतना से पृथक् हैं। यों तो पृथ्वी आदि भूत चेतना से अन्य भिन्न गुण लिए हुए हैं। चार्वाक पृथ्वी आदि भूतों से चेतना की उत्पत्ति सिद्ध करना चाहते हैं, किन्तु पृथ्वी आदि पांच महाभूतों के अपने-अपने गुण-चैतन्य से अन्य (इतर) है। इस प्रकार जब पृथ्वी आदि में से किसी एक पदार्थ का भी चैतन्य गुण नहीं है, तब उनके मिलने से चैतन्य गुण का उत्पन्न होना सिद्ध नहीं हो सकता। इस बात को प्रयोग-विधि या अनुमान द्वारा समझा जा सकता है। भूत समुदाय-पंचमहाभूत स्वतन्त्र है इसलिए वे धर्म पक्ष के रूप में ग्रहण किये जाते हैं और उन भूतों का गुण चैतन्य नहीं है, यह साध्य धर्म है। पृथ्वी आदि के गुण चैतन्य से अन्य हैं, दूसरे हैं, यह हेतु है। अन्य गुण युक्त पदार्थों के जो समुदाय या समुदाय समूह है, उस समुदाय में अपूर्व गुण जो उनमें पहले से विद्यमान नहीं है, उत्पन्न नहीं होता। जैसे-बालू के कणों के समुदाय में तेल उत्पन्न करने वाला स्निग्धता का गुण नहीं है, और बालू को पीलने से तैल पैदा नहीं होता उसी प्रकार घड़ों और वस्त्रों के समुदाय स्तम्भ आदि उत्पन्न नहीं हो सकते। शरीर में चैतन्य गुण दृष्टिगोचर-अनुभूत होता है, वह आत्मा का ही गुण हो सकता है, पंचभूतों का नहीं। पांच इन्द्रियों के उपादान गुण चैतन्य नहीं होने से भूत चैतन्य गुण वाला नहीं हुआ, न इन्द्रियाँ। उन इन्द्रियों के जो उपादान मूल कारण हैं, वे अचित्त रूप हैं-ज्ञानात्मक या चेतनात्मक नहीं हैं। अतएव चैतन्यभूतसमुदाय या पांचमहाभूतों
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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