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________________ 80 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद उत्तराध्ययन में भी तज्जीव-तच्छरीरवाद के सन्दर्भ में विवेचन प्राप्त होता है-जिस प्रकार अरणी में अविद्यमान अग्नि उत्पन्न होती है, दूध में घी और तिल में तेल पैदा होते हैं, उसी प्रकार शरीर में जीव उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं। और शरीर के नाश हो जाने पर उनका अस्तित्व नहीं रहता (उत्तराध्ययन, 14.18 [225])। कठोपनिषद् में नचिकेता आत्मनित्यतावाद और आत्म-अनित्यतावाद में सत्य-असत्य का रहस्य जानने को आतुर था (कठोपनिषद्, 1.20 [226])। उक्त विवरण से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 600 ई.पू. में आत्म-अनित्यतावाद सिद्धान्त को मानने वाले विचारकों में अजितकेशकम्बल के अलावा अन्य लोग भी विद्यमान थे। तत्त्वसंग्रह (8-9वीं ई. सदी) ग्रन्थ के अनुसार 'तज्जीव-तच्छरीरवाद' के जनक कम्बलाश्वतर कहे गए हैं (तत्त्वसंग्रह, श्लोक-1863 [2271)। दीघनिकाय में भूतवादी के रूप में अजितकेशकम्बली का नाम है। कम्बल तो दोनों नामों में समान है। संभव है दीघनिकाय के अजितकेशकम्बल को तत्त्वसंग्रहकार ने कम्बलाश्वतर बना दिया हो। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ दोनों नामों में 'कम्बल' पद आया है। यह भी संभव लगता है कि इस पंथ के अनुयायियों का किसी प्रकार से कम्बल के साथ सम्बन्ध हो। चाहे जो कुछ हो पर यह विचारधारा स्वतन्त्र चैतन्यवाद (पुनर्जन्म, परलोक और स्वतन्त्र जीववाद का विचार) की प्रतिष्ठा से पूर्वकाल की मान्यता है।' भगवान् महावीर के अनुसार अजित का मत मिथ्या है। उसने भविष्य में जीवन को नकारकर जीवों की घात करना, मारना, जलाना, नष्ट करना और भोग-सुखों को भोगना सिखाया (सूत्रकृतांग, II.1.18-19 [228])। किन्तु जिस तरह से उपनिषद् में एक सन्दर्भ आता है कि प्राण ही माता है, पिता है। प्राण ही सब कुछ है। उनके जीवित रहते अगर कोई उनके प्रति अनुचित बात करता है तो वह इनका हनन करने वाला होता है किन्तु उनके मरने के बाद उनको शूल में एकत्रित कर जला भी दे तो उसे प्राणघाती नहीं कहते (तुलना, छान्दोग्योपनिषद्, 7.15.1-3 [229])। इस आधार पर यह प्रतीत होता है कि उसने हमें जीवन में विश्वास करना सिखाया, न कि मृत्यु के बाद। उसने जीवित व्यक्ति का पूरा सम्मान करना 1. सुखलाल संघवी, भारतीय तत्त्वविद्या, पृ. 78.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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