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________________ पञ्चभूतवाद 77 केशीश्रमण के इस प्रति उत्तर को सुनकर राजा ने एक अन्य तर्क प्रस्तुत किया-मैंने एक पुरुष को प्राण रहित करके एक लौह कुम्भी में गलवा दिया तथा ढक्कन से उसे बंद करके उस पर शीशे का लेप करवा दिया। कुछ समय पश्चात् जब उस कुम्भी को खोला गया तो उसे कृमिकुल से व्याप्त देखा, किन्तु उसमें कोई दरार या छिद्र नहीं था, जिससे उसमें जीव उत्पन्न हुए हों। अतः जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं है। राजा के इस तर्क के प्रत्युत्तर में केशीश्रमण ने अग्नि से तपाये हुए गोले का उदाहरण दिया। जिस प्रकार लोहे के गोले में छेद नहीं होने पर भी अग्नि उसमें प्रवेश कर जाती है, उसी प्रकार जीव भी अप्रतिहत गति वाला होने से कहीं भी प्रवेश कर सकता है। केशीश्रमण का यह प्रत्युत्तर सुनकर राजा ने पुनः एक नया तर्क प्रस्तुत किया। उसने कहा कि मैंने एक व्यक्ति को जीवित रहते हुए और मरने के बाद दोनों ही दशाओं में तौला किन्तु दोनों के तौल में कोई अन्तर नहीं था। यदि मृत्यु के बाद आत्मा उसमें से निकला होता तो उसका वजन कुछ कम अवश्य होना चाहिए था। इसके प्रत्युत्तर में केशीश्रमण ने वायु से भरी हुई और वायु से रहित मशक का उदाहरण दिया और यह बताया कि जिस प्रकार वायु अगुरुलघु है, उसी प्रकार जीव भी अगुरुलघु है। अतः तुम्हारा यह तर्क युक्तिसंगत नहीं है कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं हैं। राजा ने फिर एक अन्य तर्क प्रस्तुत किया और कहा कि मैंने एक चोर के शरीर के विभिन्न अंगों को काटकर, चीरकर देखा लेकिन मुझे कहीं भी जीव नहीं दिखाई दिया। अतः शरीर से पृथक् जीव की सत्ता सिद्ध नहीं होती। इसके प्रत्युत्तर में केशीश्रमण ने निम्न उदाहरण देकर समझाया-हे राजन्! तू बड़ा मूढ़ मालूम होता है, मैं तुझे एक उदाहरण देकर समझाता हूँ। एक बार कुछ वनजीवी साथ में अग्नि लेकर एक बड़े जंगल में पहुंचे। उन्होंने अपने एक साथी से कहा-हे मित्र! हम जंगल में लकड़ी लेने जाते हैं, तू इस अग्नि से आग जलाकर हमारे लिए भोजन बनाकर तैयार रखना। यदि अग्नि बुझ जाए तो लकड़ियों को घिसकर अग्नि जला लेना। संयोगवश उसके साथियों के चले जाने पर थोड़ी ही देर बाद आग बुझ गई। अपने साथियों के आदेशानुसार वह लकड़ियों को चारों ओर से उलट-पुलट कर देखने लगा लेकिन आग कहीं नजर नहीं आई। उसने अपने कुल्हाड़ी से लकड़ियों को चीरा, उनके छोटे-छोटे टुकड़े किये, किन्तु फिर
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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