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________________ तत्त्वचिन्तक और उच्चकोटि के धर्माचार्य थे। उनके लिये प्रयुक्त होने वाले स्याद्वादाचलसिंह, तार्किकचक्रवर्ती, वादीभपंचानन, वाक्कल्लोलपयोनिधि, कविकुलराजकुंजर, अनवद्यगद्य-पद्यविद्याधरचक्रवर्ती आदि विशेषण उनकी उत्कृष्ट प्रज्ञा और प्रभावकारी व्यक्तित्व के परिचायक हैं। 'नीतिवाक्यामृत' की प्रशस्ति में उक्त सभी उपाधियाँ प्राप्त होती है। 1 यशोदव को देवसंघ का तिलक कहा गया है।42 सोमदेव के संरक्षक 'अरिकेशरी' नामक चालुक्य राजा के पुत्र वाद्यराज या बद्दिग नामक राजकुमार थे। यशस्तिलक का प्रणयन गंगधारा नामक स्थान में रहते हुये किया गया है। सोमदेव ने अपने साहित्य में राष्ट्रकूटों के साम्राज्य के तत्कालीन अभ्युदय का परिचय प्रस्तुत किया है। वस्तुतः राष्ट्रकूटों के राज्यकाल में साहित्य, कला, दर्शन एवं धर्म की बहुमुखी उन्नति हुई है। कवि का 'यशस्तिलकचम्पू' मध्यकालीन भारतीय संस्कृति के इतिहास का अपूर्व स्रोत है। आ. सोमदेव ईस्वी सन् 959 अर्थात् दशम शती के विद्वानाचार्य हैं। आ. सोमदेव अद्वितीय प्रतिभाशाली कवि और दार्शनिक विद्वान् थे। आचार्य वादिराज दार्शनिक, चिन्तक और महाकवि के रूप में वादिराज ख्यात हैं। ये उच्चकोटि के तार्किक होने के साथ भावप्रवण महाकाव्य-प्रणेता भी हैं। इनकी बुद्धिरूपी गाय ने जीवनपर्यन्त सुतर्करूपी घास खाकर काव्य-दुग्ध से सहृदयजनों को तृप्त किया है। इनकी तुलना जैन-कवियों में सोमदेवसूरि से और इतर संस्कृत-कवियों में नैषधकार श्रीहर्ष से की जा सकती है। प्रस्तुत वादिराज जगदेकमल्ल द्वारा सम्मानित हुये थे, अतः इनका समय सन् 1010 से 1065 ईस्वी प्रतीत होता है। आचार्य पद्मनन्दि प्रथम ____ पद्मनन्दि प्रथम से हमारा अभिप्राय 'जम्बूदीवपण्णत्ति' के कर्ता से है। ये अपने को वीरनन्दि का प्रशिष्य और बलनन्दि का शिष्य बतलाते हैं। इन्होंने विजयगुरु के पास ग्रन्थों का अध्ययन किया था। ग्रन्थ-रचना के स्थान और वहाँ के शासक का नाम निर्देश करते हुये यह बतलाया है कि बारांनगर का स्वामी नरोत्तमशक्तिभूपाल था। 'जम्बूदीवपण्णति' के अतिरिक्त इनकी दो रचनायें और मानी जाती हैं, एक है प्राकृतपद्यात्मक 'धम्मरसायण' और दूसरी है 'प्रकृतपंचसंग्रहवृत्ति'। पद्मनन्दि का समय विक्रम संवत् 1100 अर्थात् ईस्वी सन् 1043 के लगभग सिद्ध किया है। आचार्य पद्मनन्दि द्वितीय पद्मनन्दि द्वितीय पद्मनन्दि-पंचविंशतिका के रचयिता हैं। इन्होंने अपने गुरु वीरनन्दि को नमस्कार किया है। आचार्य पद्मनन्दि द्वितीय का समय ईस्वी सन् 959 भगवान महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 0065
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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