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________________ जटासिंहनन्दि, वीरनन्दि, विद्यानन्द आदि आचार्य परिगणित हैं। सारस्वताचार्यों की प्रमुख विशेषतायें विद्वानों ने निम्नानुसार बताईं हैं आगम के मान्य-सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा हेतु तर्क-विषयक ग्रन्थों का प्रणयन, श्रुतधराचार्यों द्वारा संकेतित कर्म-सिद्धान्त, आचार-सिद्धान्त एवं दर्शन-विषयक स्वतन्त्र ग्रन्थों का निर्माण, लोकोपयोगी पुराण, काव्य, व्याकरण, ज्योतिष-प्रभूति विषयों से सम्बद्ध ग्रन्थों का प्रणयन और परम्परा से प्राप्त सिद्धान्तों का पल्लवन, युगानुसारी विशिष्ट प्रवृत्तियों का समावेश करने के हेतु स्वतन्त्र एवं मौलिक-ग्रन्थों का निर्माण, महनीय और सूत्ररूप में निबद्ध रचनाओं पर भाष्य एवं विवृत्तियों का लेखन, संस्कृत की प्रबन्धकाव्य-परम्परा का अवलम्बन लेकर पौराणिक-चरित और व्याख्यानों का ग्रंथन एवं प्राचीन लोककथाओं के साथ ऋतु-परिवर्तन, सृष्टि-व्यवस्था, आत्मा का आवागमन, स्वर्ग-नरक, प्रमुख तथ्यों एवं सिद्धान्तों का संयोजन अन्य दार्शनिकों एवं तार्किकों की समकक्षता प्रदर्शित करने तथा विभिन्न एकान्तवादों की समीक्षा हेतु स्याद्वाद की प्रतिष्ठा करनेवाली रचनाओं का सृजन करना आदि। प्रमुख और प्रभावक सारस्वत आचार्यों का संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार हैआचार्य समन्तभद्र सारस्वताचार्यों में सर्वप्रथम स्थान स्वामी 'समन्तभद्र' का है। विद्वानों ने इन्हें श्रुतधराचार्यों के समान महनीय माना है। इन्हें आदि-जैन-संस्कृत कवि एवं स्तुतिकार के साथ-साथ अद्वितीय दार्शनिक एवं न्याय का विशेषज्ञ माना गया है। 'आदिपुराण' के कर्ता आचार्य जिनसेन ने इन्हें अपने युग के वादी, वाग्मी, कवि एवं गमक मनीषियों में सर्वश्रेष्ठ माना है तथा लिखा है कि "मैं उन समन्तभद्र को नमस्कार करता हूँ, जो कवियों में ब्रह्मा हैं तथा जिनके वचनरूपी-वज्रपात से मिथ्यातमरूपी-पर्वत चूर-चूर हो जाते हैं।"23 अनेकों शिलालेखों एवं ग्रन्थों में भी आपका यशोगान मिलता है। ___ इन्हें दक्षिणभारत के चोलवंश का राजकुमार अनुमानित किया गया है। कहा जाता है कि इनके पिता 'उरगपुर' के क्षत्रिय-राजा थे, जोकि कावेरी के तट पर बसा हुआ अत्यन्त समृद्ध नगर था। इनका जन्म का नाम 'शांतिवर्मा' बताया जाता है। विद्वानों ने विभिन्न प्रमाणों के अध्ययनपूर्वक इनका समय ईसा की प्रथम शताब्दी का उत्तरार्द्ध एवं दूसरी शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना है। स्तुतिकाव्य के प्रवर्तक समन्तभद्र आचार्य के द्वारा रचित 11 ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है - 1. वृहत् स्वयम्भूस्तोत्र, 2. स्तुतिविद्या-जिनशतक, 3. देवागमस्तोत्र-आप्तमीमांसा, 4. युक्त्यनुशासन, 5. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 6. जीवसिद्धि, 7. तत्त्वानुशासन, 8. प्राकृतव्याकरण, 9. प्रमाणपदार्थ, 10., कर्मप्राभृतटीका, एवं 11. गन्धहस्तिमहाभाष्य। 0044 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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