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________________ के अन्तेवासी हैं। जो इस तथ्य के पोषक है कि आर्यमंक्षु और नागहस्ति समकालीन थे, उनमें 'कसायपाहुड' की विज्ञता थी एवं यतिवृषभ के गुरु भी थे। इन्द्रनन्दि के 'श्रुतावतार' में आर्यमंक्षु और नागहस्ति को गुणधराचार्य का शिष्य बताया गया है। 'नन्दिसूत्र' की 'पट्टावली' में आचार्य आर्यमंक्षु का परिचय एवं श्वेताम्बर पट्टावली में नागहस्ति का परिचय देखने से इन दोनों के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में यह निष्कर्ष निकलता है कि ये दोनों आचार्य सिद्धान्त के मर्मज्ञ, श्रुत-सागर के पारगामी, सूत्रों के अर्थ-व्याख्याता, गुप्ति, समिति और व्रतों के पालन में सावधान तथा परीषह और उपसर्गों के सहन करने में पटु तथा वाचक और प्रभावक भी थे। आर्यमंक्षु और नागहस्ति 'महाकम्मपयडिपाहुड' के ज्ञाता थे। धवला-टीकाकार आचार्य वीरसेन ने आर्यमंक्षु और नागहस्ति के उपदेश का वर्णन करते हुये लिखा है कि "आर्यमंक्षु और नागहस्ति के उपदेश प्रवाहक्रम से आये हुये थे।" उन उपदेश को 'पवाइज्जमाण' कहा है। इनसे यतिवृषभ ने 'कसायपाहुड' के सूत्रों का व्याख्यान प्राप्त कर चूर्णिसूत्रों की रचना की है। आचार्य वज्रयश "तिलोयपण्णत्ती' में आचार्य 'वज्रयश' को उल्लेखपूर्वक अन्तिम प्रज्ञाश्रमण बताया गया है। आचार्य व्रजयश या 'वइरजस' उनका उल्लेख करने वाले आचार्य यतिवृषभ के पूर्ववर्ती थे। चूर्णिसूत्रकार आचार्य यतिवृषभ जयधवलाटीका के निर्देशानुसार आचार्य यतिवृषभ ने आर्यमंक्षु और नागहस्ति से 'कसायपाहुड' की गाथाओं का सम्यक् प्रकार अध्ययन कर अर्थ-अवधारण किया और 'कसायपाहुड' पर चूर्णिसूत्रों की रचना की। जयधवलाटीका में अनेक स्थलों पर यतिवृषभ का उल्लेख किया गया है, लिखा है_ "एवं जदिवसहाइरियदेसामासियसुत्तत्थपरूवणं काऊण संपहि जइवसहाइरियसूचिदत्थमुच्चारणाए भणिस्समामो।" ___ अर्थात् यतिवृषभ आचार्य द्वारा लिखे गये चूर्णिसूत्रों का अवलम्बन लेकर उक्तार्थ प्रस्तुत किया गया है। अतः दिगम्बर-परम्परा में चूर्णिसूत्रों के प्रथम रचयिता होने के कारण यतिवृषभ का अत्यधिक महत्त्व है। चूर्णिसूत्रकार यतिवृषभ आठवें 'कर्मप्रवाद' के ज्ञाता थे। आपने आर्यमंक्षु और नागहस्ति का शिष्यत्त्व स्वीकार किया था। व्यक्तित्व की महनीयता की दृष्टि से यतिवृषभ भूतबलि के समकक्ष हैं। इनके मतों की मान्यता सार्वजनीन है। यतिवृषभ आगमवेत्ता तो थे ही, पर उन्होंने सभी परम्पराओं में प्रचलित उपदेशशैली का परिज्ञान भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 0039
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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