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________________ जम्बूद्वीप की रचना : तीर्थक्षेत्र श्री हस्तिनापुर जी में दिगम्बर जैन - त्रिलोकसंस्थान द्वारा जम्बूद्वीप की विशाल रचना की गई है, जो महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। आर्यिका ज्ञानमति जी की लगन से यह रचना हुई है। - तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी का विवाद: जैन समाज का तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी हैं। श्वेताम्बर जैन समाज के साथ पिछले 100 वर्षों से अधिक न्यायालयों में भिन्न-भिन्न केस चलते आ रहे हैं। देश की स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी-र - राज में सुप्रीम कोर्ट लन्दन में होती थी, उसमें भी इस विवाद के लिये केस चला, जिसमें बैरिस्टर चम्पतराय जी ने पैरवी करके यह निर्णय लिया कि दिगम्बर जैन आम्नाय के अनुसार श्री सम्मेदशिखर जी की 20 टोंके हैं। केवल पूजा - आदि करने का समस्त जैन समाज को अधिकार है । परन्तु श्वेताम्बर - समाज उन पर अपना मालिकाना हक मानते रहे हैं। बिहार प्रान्त के जिला गिरिडीह आदि में इस सम्बंध में अनेकों केस चल रहे हैं। पिछले 5-6 वर्ष पूर्व इन समस्त केसों को बिहार की रांची हाईकोर्ट में एक जगह कर केस प्रारम्भ किया। अनेकों उच्च कोटि के एडवोकेट दोनों ओर से अपनी-अपनी बहस करते रहे। पिछले 3 वर्ष हुये, रांची हाईकोर्ट द्वारा जो निर्णय किया, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है; उसके द्वारा समस्त पहाड़ का मालिकाना अधिकार समस्त जैन समाज को दिया गया है, व उन्हें यह भी अधिकार दिया कि वह आपस में मिलकर इसकी व्यवस्था करें। अब बिहार सरकार ने दिगम्बर जैन -: -समाज एवं श्वेताम्बर ( आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट) समाज के साथ शासकीय अधिकारियों को मिलाकर एक व्यवस्था समिति का गठन कर दिया है, जिसकी देखरेख में यह कार्य चल रहा है। इस कार्य में दिगम्बर जैन समाज को जो सफलता प्राप्त हुई, इसका समस्त जैन समाज के संगठन को श्रेय जाता है, जिसका नेतृत्त्व साहू अशोक कुमार जी कर रहे थे। मांश्री चन्दाबाई जी, आरा : आर्यिकारत्न चन्दा मांश्री का विवाह 12 वर्ष की आयु में राजर्षि देवकुमार जी, आरा (बिहार), के लघु - भ्राता श्री धर्मकुमार जी के साथ सम्पन्न हुआ। विवाह के एक वर्ष बाद ही प्लेग के फैलने से धर्मकुमार जी का निधन हो गया। 13 वर्ष की अल्पायु में वह विधवा हो गईं। ब्र. शीतलप्रसाद एवं भट्टारक ने मीसागर जी वर्णी के मार्गदर्शन एवं उपदेशों से इन्होंने जैनधर्म के प्रमुख - ग्रंथों का स्वाध्याय करना प्रारंभ कर दिया व अपना सारा जीवन का समय उनमें व्यतीत करने लगीं। 20 वर्ष की आयु में वे एक प्रसिद्ध विदुषी बन गईं। 1907 में 'आरा कन्या पाठशाला' स्थापित कर उसकी देखरेख करते हुये अध्ययन का कार्य करती रहीं । दिगम्बर जैन - महिला - परिषद् का गठन किया। सन् 1921 में महिलाश्रम की स्थापना कर उसका नाम 'धर्मकुंज' रखा गया। इनके इस कार्य का प्रभाव देश के कोने-कोने में हुआ । आश्रम में जैन - बालाश्रम का भी प्रारम्भ किया गया। गांधीजी भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ OO 159
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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