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________________ (8) विद्वानों को लेकर गये। (6) U.S.A. व U.K. की यात्राओं व पंच-कल्याणक व विश्वजैन-सम्मलेनों में भाग लिया। (7) महासभा के शताब्दी-वर्ष में हरेक प्रान्त में सम्मान समारोह आयोजित करके विद्वानों व प्रतिष्ठित समाजसेवकों व कार्यकर्ताओं को सम्मान-पत्र भेंट किये। आचार्य वर्द्धमान सागरजी को पंचमपट्टाधीश बनाकर सारे भारत में गोम्मटेश्वर कलशाभिषेक के अवसर पर उनका विहार कराने में योगदान किया। (9) जैनगज़ट, जैन-महिलादर्श एवं जैन-बालादर्श जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ किया एवं इनका सदस्यता-अभियान चलाया। (10) तीर्थों के जीर्णोद्धार के लिये अध्यक्ष श्री सेठी जी ने 2 वर्ष तकं सारे व्यवसाय को छोड़कर पूरा समय लगाकर लाखों रुपये का जीर्णोद्धार के लिये दान दिलाकर निर्माण कार्य कराया। उस समय समाज की स्थिति : उस समय दिगम्बर जैन समाज अत्यन्त रूढ़िवादी, कर्मकाण्डों में लिप्त था और शिक्षा से वंचित था। जाति-प्रथा और साम्प्रदायिकता लोगों की नस-नस में व्याप्त थी, लोग प्रेस में छपे ग्रंथों को छूना तक पाप समझते थे। किसी का जाति से बहिष्कृत कर देना मामूली बात थी, समाज में बाल-विवाहों का प्रचलन था, बहुत कम उम्र की जो लड़कियाँ विधवा हो जाती थीं, उनके पुनर्विवाह की समाज में मान्यता नहीं थी। साधारण कारणों से ही जाति से बहिष्कृत कर देने के कारण 'दस्सा समाज' का जन्म हुआ। जिन्हें मन्दिरों में दर्शन, पूजन से वंचित कर दिया जाता था व बिरादरी में सम्मिलित नहीं होने दिया जाता था। जवान या बड़ी उम्र में मरने पर समस्त गाँववालों को भोजन कराना, रिश्तेदारों व परिवारवालों में मिष्ठान व पारितोषिक वितरण करना अनिवार्य था, कर्ज लेकर भी करना पड़ता था। दिगम्बर-जैन-समाज की उपजातियों में विवाहों आदि को 'धर्म-विरुद्ध' कहकर समाज को अनेक उपजातियों में बाँट रखा था। विवाह के अवसर पर नाचनेवालियों आदि को समारोहों में बुलाने जैसे आडम्बरपूर्ण कार्यों पर अनाप-शनाप व्यय हो रहा था। भारत जैन महामण्डल की स्थापना : सन् 1892 में वर्धा (महा.) में 'जैन-सभा' के नाम से संस्था का गठन हुआ, जिसमें अनेक सुधारवादी कार्यकर्ता सम्मिलित हुये। सन् 1899 में 'जैन यंगमैन एसोसियशन' की स्थापना जाति व सम्प्रदाय के भेद को गौंण करके समस्त जैन-समाज के आधार पर गठित हुई, जिसका प्रथम अधिवेशन रायबहादुर सुल्तानसिंह जी की अध्यक्षता में हुआ। धीरे-धीरे देश के सभी क्षेत्रों के महानुभाव इसमें सम्मिलित होने लगे। कुछ समय बाद इसका नाम 'ऑल इण्डिया जैन एसोसियशन' कर दिया गया, आज यह संस्था 00150 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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