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________________ आचार्य विद्यानन्द जी " हैं। आचार्य विद्यानन्द जी महाराज वर्तमान में श्रमण संघ के सबसे प्रमुख आचार्य । आपका जन्म 'बेलगाँव' जिले के 'शेडवाल' ग्राम में हुआ। आपके पिताजी कालप्पा उपाध्ये एवं माता श्री सरस्वती थीं। आपका जन्म 22 अप्रैल, 1925 में हुआ था। बाल्यावस्था का नाम 'सुरेन्द्र' रखा गया। आपकी शिक्षा-दीक्षा 'बेलगाँव' में हुई। आपको ब्रह्मचर्य व्रत, तपोनिधि श्री महावीरकीर्ति जी महाराज से प्राप्त हुये। आचार्य देशभूषण जी महाराज ने आपको दिल्ली में 'मुनि दीक्षा' प्रदान की। आपने देश के विभिन्न नगरों एवं गाँवों में विहार किया । हिमालय के उत्तुंगशिखर पर जाकर तपस्या की। बद्रीधाम में जाकर आदिनाथ स्वामी के दर्शन किये। आप ओजस्वी वक्ता, मधुरभाषी एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं। आचार्य देशभूषण जी की समाधि के पश्चात् दिल्ली जैन समाज ने आपको 'आचार्य पद' से अलंकृत किया। आप साहित्य-प्रेमी हैं। प्राकृत-साहित्य में आपकी विशेष रुचि है। नई दिल्ली में 'कुन्दकुन्द भारती' नामक संस्था आपके सान्निध्य में साहित्य - निर्माण व प्रकाशन का कार्य कर रही है। आपकी प्रमुख रचनाओं में विश्वधर्म की रूपरेखा, पिच्छी कमण्डलु, कल्याण- - मुनि और सिकन्दर, ईश्वर क्या और कहाँ ? जैसी पुस्तकों के नाम उल्लेखनीय हैं। -- आचार्य विद्यानन्द जी का आज सन्त- जगत् में एक विश्वविख्यात नाम है। आपकी वाणी में जादू है और जनता स्वयमेव आपके पास चली आती है। आप मानवता के पोषक हैं और 'मत ठुकराओ, गले लगाओ, धर्म सिखाओ' आपका नारा है। भगवान् महावीर का 2500वाँ निर्वाणोत्सव, गोम्मटेश्वर सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक गोम्मटगिरि (इंदौर) एवं बावनगजा के महोत्सव, श्रीमहावीर जी का सहस्राब्दी-समारोह आदि अनेकों अभूतपूर्व आयोजन आपके पावन आशीर्वाद एवं मंगलसान्निध्य में अपार गरिमापूर्वक सम्पन्न हुये हैं। सम्प्रति आप 'नियम- सल्लेखना' का व्रत लेकर आत्मसाधना में निरत हैं। आचार्य विद्यासागर जी 57 वर्तमान जैन - आचार्यों में आचार्य विद्यासागर जी का नाम प्रथम पंक्ति में आता है। आप भी दक्षिण भारत से हैं। आपका जन्म कर्नाटक प्रान्त के 'सदलगा' ग्राम में आश्विन शुक्ला पूर्णिमा विक्रम संवत् 2003 में श्रीमती एवं श्री मलप्पा के यहाँ हुआ। आपका बचपन का नाम 'विद्याधर' था। आपको प्रारम्भ से ही निवृत्ति की ओर भाव था। 22 वर्ष की अवस्था में आपने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से 'अजमेर ' में 30 जून सन् 1968 को 'मुनि दीक्षा' ग्रहण की और उन्होंने ही सन् 1972 में आपको 'आचार्य-पद' पर बिठलाकर स्वयं ने 'सल्लेखना - व्रत' धारण कर लिया। आप त्याग, तपस्या एवं गम्भीर ज्ञान के धारी हैं। आपका विशाल मुनि-संघ 00146 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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