SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसके पश्चात् आप बराबर बढ़ते ही गये। वि. संवत् 2025 फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को 'श्री महावीर जी' क्षेत्र में आपको पूरे संघ ने मिलकर 'आचार्य-पद' प्रदान किया। आप विशाल संघ के साथ रहे। आचार्य बनने के पश्चात् आपने सारे देश में विहार किया और अपनी अमृतमय वाणी से सबको अपना बना लिया। आपने मुनिधर्म को प्रभावक बनाया और आपने 28 मुनि-दीक्षायें, कई ऐलक-दीक्षायें, 7 क्षुल्लक-दीक्षायें एवं 21 आर्यिका-दीक्षायें एवं 3 क्षुल्लिकादीक्षायें कराके मुनि-धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया। आप स्नेह एवं सौजन्य की मूर्ति थे, लेकिन सिद्धांत-विरोधी-प्रवृत्ति का पक्ष कदापि नहीं लेते थे। आचार्य धर्मसागर जी का करनी और कथनी में किञ्चित् भी अन्तर नहीं था। वे धनाढ्य तथा गरीब से समान व्यवहार करते थे। आचार्य शांतिसागर जी छाणी आचार्य शांतिसागर जी नाम के आप दूसरे आचार्य थे। एक ही नाम होने के कारण वे अपने ग्राम के नाम के कारण 'छाणी महाराज' कहलाने लगे। आपका जन्म सन् 1888 में 'उदयपुर' रियासत के 'छाणी' ग्राम में हुआ था। आपने 35 वर्ष की आयु में सन् 1923 में 'मुनि-दीक्षा' धारण की। सन् 1926 में आपको 'आचार्य-पद' दिया गया तथा लगातार 20 वर्ष तक निरन्तर विहार करने के पश्चात् सन् 1944 में आपने समाधिमरण-पूर्वक शरीर त्याग दिया। इसीप्रकार एक आचार्य शांतिसागर जी दक्षिण में हुये। इन दोनों आचार्यों की जीवन-गाथा निम्नप्रकार है जन्म क्षुल्लक मुनिदीक्षा आचार्य समाधि सन् दीक्षा पद प्राप्त आचार्य शांतिसागर जी दक्षिण 1872 1915 1920 1924 1955 आचार्य शांतिसागर जी छाणी 1888 1922 1923 1926 1944 'छाणी महाराज' का उत्तर भारत के गाँवों में विहार हुआ और चातुर्मास स्थापित किये। एक बार 'ब्यावर' में सन् 1933 में दोनों आचार्यों के एक-साथ चातुर्मास सम्पन्न हुये। इससे जनसाधारण में अपूर्व धार्मिक जागृति उत्पन्न हुई। यद्यपि 'छाणी महाराज' की 'तेरहपंथ-परम्परा' थी और शांतिसागर जी दक्षिणवालों की 'बीसपंथ' की परम्परा थी; लेकिन दोनों में परस्पर खूब मेल रहा तथा दोनों ने परम्पराओं को आपसी विरोध का कारण नहीं बनने दिया। आचार्य शांतिसागर जी छाणी ने मुनि बनने के पश्चात् राजस्थान एवं मालवा के विभिन्न नगरों में 20 चातुर्मास स्थापित किये, जिनकी तालिका निम्नप्रकार है48 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 00 139
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy