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________________ होगा इन जातियों की संख्या लाखों में होगी; किन्तु भाषा, रीति-रिवाज की भिन्नता के कारण उनमें सामंजस्य स्थापित नहीं होता । बीसवीं शताब्दी निर्ग्रन्ध - साधुओं की शताब्दी भट्टारक - संस्था का पतन 19वीं शताब्दी से ही प्रारम्भ हो गया, तथा 20वीं शताब्दी में तो इस संस्था का प्रायशः अस्तित्व समाप्त हो गया; लेकिन दक्षिण- भारत में अभी उनका अस्तित्व है। मूडबिद्री (कर्नाटक), श्रवणबेलगोल (कर्नाटक), कोल्हापुर (महाराष्ट्र), हुमचा (कर्नाटक) जैसे स्थानों में अभी तक उनके केन्द्र हैं, जिन्हें 'गादी' कहा जाता है। यहाँ के भट्टारकगण भी प्रशिक्षित एवं प्रभावक हैं। इससे दक्षिण भारत के जैन समाज में उनके प्रति आकर्षण बना हुआ है। 20वीं शताब्दी के पूर्व उत्तर- भारत में भट्टारक-संस्था के कारण निर्ग्रन्थ- - परम्परा में व्यवधान पड़ गया था और नग्न - दिगम्बर- मुनि प्रायः नहीं दिखाई देते थे। लेकिन दक्षिण भारत में 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में निर्ग्रन्थ- परम्परा पुनः जीवित हो उठी ओर चार श्रावकों ने मुनि दीक्षा धारण की और चारों को ही 'आदिसागर' नाम दिया गया। वे जन्म-स्थानों के नाम से जाने जाने लगे। इससे 1. आदिसागर बोरगांव, 2. आदिसागर अंकलीकर, 3. आदिसागर भोसेकर, और 4. आदिसागर भोज ये चार नाम दिये गये। ―――――― 1. आदिसागर बोरगांव 'बोरगांव' के आदिसागर मुनिराज 'बोरगांव' के पर्वत पर रहते थे। वे सोमवार के सोमवार अर्थात् आठ दिन में एक बार आहार लेते थे। आहार में गन्ने का रस लेते थे, तो मात्र गन्ने का रस ही लेते थे। इसी तरह यदि आम का रस लेते, तो आम काही रस लेते थे। आठ दिन में आपको एक बार आहार देकर श्रावकगण अपने को धन्य मानते थे। आपका गृहस्थ जीवन का नाम 'जिनप्पा' था। 39 2. आदिसागर अंकलीकर आदिसागर अंकलीकर का जन्म फाल्गुन कृष्ण 13, गुरुवार, संवत् 1886 में 'अंकली' ग्राम में हुआ, जो महाराष्ट्र प्रान्त में है। 'अंकली' ग्राम में जन्म लेने के कारण आप 'अंकलीकर' नाम से प्रसिद्ध हुये । आप बचपन से ही बड़े विलक्षण, बुद्धिमान और शक्तिशाली थे। मित्रों और साथियों में आपकी बड़ी धाक थी। आपका साहस जबरदस्त था । युवावस्था में आपका विवाह 'आऊ' नाम की कन्या से हुआ । गृहस्थाश्रम में रहकर भी आप आत्म-चिन्तन, व्रत, उपवास, संयम आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करते थे। " जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा" की सूक्ति आप पर अक्षरशः चरितार्थ होती थी। 00 134 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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