SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22. चरनागरे 1 यह भी 84 जातियों में से एक जाति है। मध्यप्रदेश में चरनागरे-समाज प्रमुख रूप से निवास करता है। सन् 1914 की जनगणना में इस समाज की संख्या 1987 थी। 23. कठनेरा 2 यह भी 84 जातियों में एक छोटी जाति है । कठनेरा - समाज की जनसंख्या सन् 1914 में केवल 711 थी, जो अब कितनी रह गई होगी, इसका अनुमान लगाना कठिन है। फिर भी यह जीवित जाति है। 24. श्रीमाल यह जाति भी दिगम्बर - समाज की जीवित जाति मानी जाती है। 'श्रीमाल ' यद्यपि दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में मिलते हैं; लेकिन अधिकांश जाति दिगम्बर-धर्म को माननेवाली है। राजस्थान में दिगम्बर- धर्मानुयायी श्रीमालों की अच्छी संख्या में परिवार हैं। जयपुर के बधीचन्द जी के मन्दिर के बहरे में संवत् 1394 की पार्श्वनाथे की प्रतिमा है, जो श्रीमाल - जातीय - श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठित की गई है। 18वीं शताब्दी में अखयराज - श्रीमाल हिन्दी गद्य के अच्छे विद्वान् हो गये हैं, जिन्होंने 'चौदहह - गुणस्थान - चर्चा' लिखी थी - 00 132 - चौदह गुणस्थानक कथन भाषा सुनि सुख होई । अखेराज श्रीमाल ने करी जथा मति जोई ॥ 25. विनैक्या 34 यह जाति भी दिगम्बर जैन समाज का एक अंग रही है; लेकिन यह बिखरी हुई समाज है। जैनधर्म एवं संस्कृति के रख-रखाव में इस जाति का विशेष योगदान नहीं मिलता है। 26. समैया 35 किसी भी इतिहासकार ने इस जाति का उल्लेख नहीं किया, क्योंकि यह परवार जाति का ही एक अंग थी; लेकिन जब से तारण-समाज की स्थापना हुई, तथा मूर्ति-पूजा के स्थान पर शास्त्र - पूजा की जाने लगी, तब से इस जाति का 'समैया' नामकरण हो गया। यह जाति भी सागर - जिले में मुख्यरूप से मिलती है। सन् 1914 की जनगणना में में समैया - जाति की संख्या 1107 थी; लेकिन आज तारण-पंथियों की अच्छी संख्या है। सागर के पूर्व सांसद श्री डालचन्द्र जी जैन समैया - जाति के सदस्य हैं। प्रारम्भ में तारण-पंथ का अवश्य विरोध हुआ था; लेकिन वर्तमान में तारणपंथी भी दिगम्बर जैन समाज के ही अंग हैं। भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy