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________________ 8. ओसवाल 'ओसवाल' भी मूलतः दिगम्बर - समाज की एक जाति रही है। 'ओसवालजाति' का उद्गम-स्थान 'ओसिया' में माना जाता है। ओसवालों में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही धर्मों को माननेवाले पाये जाते हैं। मुल्तान से आये हुये मुल्तानी-ओसवालों में अधिकांश दिगम्बरधर्म को माननेवाले हैं। मुल्तानी - ओसवाल वर्तमान समय में जयपुर एवं दिल्ली में बसे हुये हैं, जिनके घरों की संख्या करीब 400 होगी। ऐसा लगता है कि 'ओसिया' से जब 'ओसवाल - जाति' देश के विभिन्न भागों में आजीविका के लिये निकली तथा पंजाब की ओर बसने के लिये आगे बढ़ी, तो उसमें दिगम्बर-धर्मानुयायी भी थे। उनमें से अधिकांश मुल्तान डेरा गाजीखान, वैद्य एवं उत्तरी - पंजाब के अन्य नगरों में बस गये और वहीं व्यापार करने लगे । ओसवाल- दिगम्बर - समाज अत्यधिक समृद्ध एवं धर्म के प्रति दृढ़-आस्था वाली जाति है। ―――― दिगम्बर जैन- ओसवाल - जाति में वर्धमान नवलखा, अमोलकाबाई, लुहिन्मामल, दौलतराम ओसवाल आदि अनेक जैन विद्वान् एवं श्रेष्ठीगण हुये हैं । 18 9. लमेचू " यह भी 84 जातियों में एक जाति है, जो मूर्ति - लेखों और ग्रंथ - प्रशस्तियों में 'लम्ब-कंचुकान्वय' नाम से प्रसिद्ध है। मूर्ति - लेखों में 'लम्बकंचुकान्वय' के साथ 'यदुवंशी' लिखा हुआ मिलता है, जिससे यह एक क्षत्रिय जाति ज्ञात होती है। इस जाति का विकास किसी 'लम्बकांचन' नामक नगर से हुआ जान पड़ता है। इसमें खरिया, रावत, ककोटा और पचोले गोत्रों का भी उल्लेख मिलता है। इस जाति में अनेक प्रतिष्ठित और परोपकारी पुरुष हुये हैं, जिन्होंने जिन-मन्दिरों और मूर्तियों का निर्माण कराया है, अनेक ग्रंथ लिखवाये हैं। इनमें 'बुढेले' और लमेचू' ये दो भेद पाये जाते हैं, जो प्राचीन नहीं है। बाबू कामताप्रसाद जी ने 'प्रतिमा - लेख - संग्रह ' में लिखा है कि " बुढेले-लंबेचू अथवा 'लम्बकंचुक' जाति का एक गोत्र था, किन्तु किसी सामाजिक-अनबन के कारण विक्रम संवत् 1590 और 1670 के मध्य किसी समय ये दोनों पृथक् जातियाँ बन गईं। " 'बुढेले' जाति के साथ रावत, संघई आदि गोत्रों का उल्लेख मिलता है। इससे प्रकट है कि इस गोत्र के साथ अन्य लोग भी लमेचुओं से अलग होकर एक अन्य जाति बनाकर बैठ गये। इन जातियों के इतिवृत्त के लिये अन्वेषण की आवश्यकता है। 'चन्द्रवाड' के चौहानवंशी राजा आहवमल के राज्यकाल में 'लंबकंचुक - कुल' के मणि साहू सेठ के द्वितीय पुत्र, जो मल्हादेवी की कुक्षि से जन्मे थे, बड़े बुद्धिमान और राजनीति में दक्ष थे। इनका नाम कण्ह या भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ ―――――― 00127
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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