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________________ भट्टारक-पट्टावली के अनुसार वि.सं. 565 में मुनि रत्नकीर्ति हुये, जो अग्रवाल-जाति के थे। देहली के तोमरवंशीय शासक अनंगपाल के शासनकाल में रचित 'पासणाहचरिउ' के अनुसार कवि श्रीधर स्वयं अग्रवाल-जैन थे तथा अपने लिये 'अयरवाल-कुलसंभवेन' लिखा है। 'पासणाहचरिउ' को लिखानेवाले नट्टलसाहु भी जैन-अग्रवाल थे। अलीगढ़ के निवासी साहू पारस के पुत्र टोडर अग्रवाल ने मथुरा में 514 स्तूपों का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। साहू पांडे राजमल्ल ने विक्रम संवत् 1642 में 'जम्बूस्वामी चरित्र' निर्माण किया था। अपभ्रंश के महान् कवि रइधू के आश्रयदाता एवं ग्रंथ-रचनानिमित्त अधिकांश अग्रवालश्रावक थे। 'आदित्यवार-कथा' के रचयिता भाउ कवि भी अग्रवाल जैन थे। राजस्थान के जैन-ग्रंथ-भण्डरों में अग्रवाल-श्रावकों द्वारा लिखवाई हुई हजारों पाण्डुलिपियाँ संग्रहित हैं। मन्दिरों एवं मूर्तियों के निर्माण में भी अग्रवाल जैन-समाज का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ग्वालियर किले की अनेक सुन्दर मूर्तियों का निर्माण अग्रवाल-जैनों ने कराया था। दिल्ली के राजा हरसुखराय सुगनचन्द ने दिल्ली में अनेक जिन-मन्दिरों का निर्माण कराया था। इसप्रकार अग्रवाल जैन-समाज दिगम्बर जैन-समाज का प्रमुख अंग है, जो वर्तमान में देश के प्रत्येक भाग में बसा हुआ है। देश में अग्रवाल-जैन-समाज की 10 लाख से अधिक संख्या मानी जाती है।' 3. परवार दिगम्बर-जैन-परवार-समाज का प्रमुख केन्द्र बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सागर, जबलपुर, ललितपुर आदि जिले माने जाते हैं। इस समाज के श्रावक एवं श्राविकायें धर्मनिष्ठ, आचार-व्यवहार में दृढ़ देखी जाती हैं, तथा ये प्राचीन परम्पराओं के अनुयायी हैं। परवार-जाति का उल्लेख 'पौरपट्टान्वय' के रूप में मूर्तिलेखों एवं प्रशस्तियों में मिलता है। लेकिन इस जाति के उत्पत्ति-स्थान के सम्बन्ध में अभी तक कोई निश्चित ग्राम, नगर का नाम नहीं मिला। पट्टावलियों में परवार-जाति का उल्लेख विक्रम संवत् 26 से मिलता है; और मुनि गुप्तिगुप्त इस जाति में उत्पन्न हुये थे, ऐसा भी उल्लेख उक्त पट्टावली में मिलता है। इसके पश्चात् सं. 765 में होने वाले पट्टाधीश एवं सं. 1256, 1264 में होने वाले आचार्य भी परवार-जाति में उत्पन्न हुये - ऐसा उल्लेख मिलता है। पं. फूलचन्द शास्त्री के मतानुसार परवार-जाति को प्राचीनकाल में 'प्रग्वाट' नाम से अभिहित किया जाता रहा है। लेकिन ब्रह्म जिनदास ने चौरासी जाति जयमाल में 'पोरवाड़' शब्द से 'परवार' जाति का उल्लेख किया है। अपभ्रंश-ग्रंथों में 'परवार' को 'परवाड़ा' शब्द से अभिहित किया गया है। महाकवि धनपाल का 'बाहुबलि 00122 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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