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________________ विधानकथा, 33. श्रीपालचरित, 24. यशोधरचरित, 35. औदार्यचिन्तामणि (प्राकृतव्याकरण), 36. श्रुतस्कन्धपूजा, 37. पार्श्वनाथस्तवन, एवं 38. शान्तिनाथस्तवन। भट्टारक ब्रह्मनेमिदत्त ब्रह्मनेमिदत्त मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगण के विद्वान् भट्टारक मल्लिभूषण के शिष्य थे। इनके दीक्षागुरु भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य विद्यानन्दि थे। ब्रह्मनेमिदत्त संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी और गुजराती भाषा के विद्वान् थे। इन्होंने संस्कृत में चरित, पुराण, कथा आदि ग्रन्थों की रचना की है। ब्रह्मनेमिदत्त का समय विक्रम की 16वीं शताब्दी है। इनकी 12-13 रचनायें प्राप्त हैं, जो इसप्रकार हैं - 1. आराधनाकथाकोश, 2. नेमिनाथपुराण, 3. श्रीपालचरित, 4. रात्रि-भोजनत्यागकथा, 6. प्रीतङ्करमहामुनिचरित, 7. धन्यकुमारचरित, 8. नेमिनिर्वाणकाव्य—इसकी प्रति ईडर में प्राप्त है, 9. नागकुमारकथा, 10. धर्मोपदेशपीयूषवर्षश्रावकाचार, 11. मालरोहिणी, एवं 12. आदित्यवारव्रतरास। भट्टारक यशकीर्ति काष्ठासंघ के माथुरान्वय पुष्करगण के भट्टारकों में भट्टारक यशकीर्ति का नाम आया है। गुणकीर्ति के पट्टशिष्य–यशकीर्ति हुये तथा इनके पट्टशिष्य मलयकीर्ति हुये। यशकीर्ति अपने समय के अत्यन्त प्रसिद्ध और यशस्वी व्यक्ति थे। 'भविष्यदत्तचरित' के प्रतिलिपि की पुष्पिका से स्पष्ट है कि विक्रम संवत् 1486 में डूंगरसिंह के राज्यकाल में भट्टारक यशकीर्ति यशस्वी हो चुके थे। इनका समय विक्रम संवत् की 15वीं शती का अन्तिम भाग तथा 16वीं शती का पूर्वार्द्ध है। इनकी चार रचनायें प्राप्त हैं - 1. पाण्डवपुराण, 2. हरिवंशपुराण, 3. जिणरत्तिकहा, एवं 4. रविवयकहा। ये सभी अपभ्रंश-भाषा में हैं। भट्टारक महनन्दि मुनि मुनि महनन्दि भट्टारक वीरचन्द के शिष्य थे। ये अपने युग के अत्यन्त प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। इनके द्वारा विरचित 'बारखड़ी दोहा' या 'पाहुड दोहा' ग्रन्थ प्राप्त हैं इसमें 333 दोहे हैं। इन्होंने ग्रन्थ के आदि में अपने गुरु का नाम का उल्लेख किया है। इनका समय विक्रम संवत् की 16वीं शताब्दी है। ___महनन्दि की एक ही रचना प्राप्त है – पाहुडदोहा। यह रचना बारहखड़ी के क्रम से लिखी गयी है। इसमें 333 दोहे हैं, जिसकी संख्या की अभिव्यंजना कवि ने विभिन्न रूपों में की है। भट्टारक गुणचन्द्र भट्टारक गुणचन्द्र मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण के भट्टारक रत्नकीर्ति के प्रशिष्य और भट्टारक यशकीर्ति के शिष्य थे। यशकीर्ति अपने समय के अच्छे 00108 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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