SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारक ज्ञानभूषण का समय विक्रम संवत् 1500-1562 है। भट्टारक ज्ञानभूषण ने संस्कृत और हिन्दी - - दोनों ही भाषाओं में रचनायें लिखी हैं। उनकी संस्कृत-रचनायें हैं आत्मसम्बोधन काव्य, ऋषिमण्डलपूजा, तत्त्वज्ञानतरंगिणी, पूजाष्टकटीका, पंचकल्याणकोद्यापनपूजा, नेमिनिर्वाणकाव्य की पंजिकाटीका, जबकि भक्तामरपूजा, श्रुतपूजा, सरस्वतीपूजा, सरस्वतीस्तुति, एवं शास्त्रमण्डलपूजा; हिन्दी - रचनायें हैं आदीश्वरफाग, जलगालनरास, पोसहरास, षट्कर्मरास, एवं नागद्रारास । - - भट्टारक अभिनव धर्मभूषण अभिनव धर्मभूषण इनका उल्लेख विजयनगर के शिलालेख संख्या 2 में वर्द्धमान भट्टारक के शिष्य के रूप में आया है। 'न्यायदीपिका' में तृतीय प्रकाश की पुष्पिकावाक्य में तथा ग्रन्थान्त में आये हुये पद्य में धर्मभूषण ने अपने को वर्द्धमान भट्टारक का शिष्य बतलाया है। इनका अन्तिम समय ईस्वी सन् 1418 आता है। अभिनव धर्मभूषण राजाओं द्वारा मान्य एवं लब्धप्रतिष्ठ यशस्वी विद्वान् थे। इनके द्वारा रचित 'न्यायदीपिका' नामक एक न्यायग्रन्थ उपलब्ध होता है। इस ग्रन्थ में तीन प्रकाश या परिच्छेद हैं। इस छोटे से ग्रन्थ में न्यायशास्त्र - सम्बन्धी सिद्धान्तों का अच्छा समावेश किया गया है। भट्टारक विजयकीर्ति विजयकीर्ति भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य थे और सकलकीर्ति द्वारा स्थापित भट्टारक- गद्दी पर आसीन हुये थे। इनके पिता का नाम 'शाहगंग' और माता का नाम 'कुँअरि' था। इनका शरीर कामदेव के समान सुन्दर था । श्रेणिचरित में विजयकीर्ति को यतिराज, पुण्यमूर्ति आदि विशेषणों द्वारा उल्लिखित किया है। विक्रम संवत् 1547-1570 तक इनके भट्टारक - पद पर आसीन रहने का उल्लेख मिलता है। अतएव विजयकीर्ति का समय विक्रम की 16वीं शताब्दी माना जाता है। विजयकीर्ति शास्त्रार्थी विद्वान् थे। इन्होंने अपने विहार और प्रवचन द्वारा जैनधर्म का प्रचार एवं प्रसार किया था। इनके द्वारा लिखित कोई भी ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। 00104 आचार्य शुभचन्द्र भट्टारक शुभचन्द्र विजयकीर्ति के शिष्य थे। भट्टारक शुभचन्द्र का जीवनकाल विक्रम संवत् 1535 - 1620 होना चाहिये। 40 वर्षों तक भट्टारक - पद पर आसीन रहकर शुभचन्द्र ने साहित्य और संस्कृति की सेवा की है। संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में ही इनकी रचनायें उपलब्ध हैं। - भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy