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________________ है। इन्होंने संस्कृत एवं प्राकृत-वाङ्मय को संरक्षण ही नहीं दिया, अपितु उसका पर्याप्त प्रचार और प्रसार किया। इनकी प्रसिद्धि महाकवीश्वर के रूप में थी। आचार्य सकलकीर्ति ने प्राप्त आचार्य-परम्परा का सर्वाधिकरूप में पोषण किया है। तीर्थ-यात्रायें कर जनसामान्य में धर्म के प्रति जागरुकता उत्पन्न की और नवमंदिरों का निर्माण कराकर प्रतिष्ठायें करायीं। निःसन्देह आचार्य सकलकीर्ति का असाधारण व्यक्तित्व था। तत्कालीन संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी आदि भाषाओं पर अपूर्व अधिकार था। भट्टारक सकलभूषण ने अपने 'उपदेशरत्नमाला' नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में सकलकीर्ति को अनेक पुराणग्रन्थों का रचयिता लिखा है। निर्ग्रन्थाचार्य सकलकीर्ति एक बड़े तपस्वी, ज्ञानी, धर्म-प्रचारक और ग्रन्थरचयिता थे। उस युग में ये अद्वितीय प्रतिभाशाली एवं शास्त्रों के पारगामी थे। आचार्य सकलकीर्ति का जन्म विक्रम संवत् 1443 (ईस्वी सन् 1386) में हुआ था।12 इनके पिता का नाम कर्मसिंह और माता का नाम शोभा था। ये हूवड़ जाति के थे और अणहिलपुरपट्टन के रहने वाले थे।13 बालक का नाम माता-पिता ने पूर्णसिंह या पूनसिंह रखा था। एक पट्टावली में इनका नाम ‘पदार्थ' भी पाया जाता है। इनका वर्ण राजहंस के समान शुभ्र और शरीर 32 लक्षणों से युक्त था। माता-पिता ने 14 वर्ष की अवस्था में ही पूर्णसिंह का विवाह कर दिया। कहा जाता है कि माता-पिता के आग्रह से ये चार वर्षों तक घर में रहे और 18वें वर्ष में प्रवेश करते ही विक्रम संवत् 1463 (ईस्वी सन् 1406) में समस्त सम्पत्ति का त्याग कर भट्टारक पद्मनन्दि के पास 'नेणवां' में चले गये। 34वें वर्ष में आचार्य पदवी धारण कर अपने प्रदेश में वापिस आये और धर्म-प्रचार करने लगे। इस समय वे नग्नावस्था में थे। आचार्य सकलकीर्ति ने बागड़ और गुजरात में पर्याप्त भ्रमण किया और धर्मोपदेश देकर श्रावकों में धर्म-भावना जागृत की थी। बलात्कारगण की ईडरशाखा का आरम्भ भट्टारक सकलकीर्ति से ही होता है। इनका स्थितिकाल विक्रम-संवत् 1443-1499 तक आता है। आचार्य सकलकीर्ति संस्कृत-भाषा के प्रौढ़ पंडित थे। इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित रचनाओं की जानकारी प्राप्त होती है - शान्तिनाथचरित, वर्द्धमानचरित, मल्लिनाथचरित, यशोधरचरित, धन्यकुमारचरित, सुकमालचरित, सुदर्शनचरित, जम्बूस्वामीचरित, श्रीपालचरित, मूलाचारप्रदीप, प्रश्नोत्तरोपासकाचार, आदिपुराणवृषभनाथचरित, उत्तरपुराण, सद्भाषितावली-सूक्तिमुक्तावली, पार्श्व-नाथपुराण, सिद्धान्तसारदीपक, व्रतकथाकोष, पुराणसारसंग्रह, कर्मविपाक, तत्त्वार्थ-सारदीपक, परमात्मराजस्तोत्र, आगमसार, सारचतुर्विंशतिका, पंचपरमेष्ठीपूजा, अष्टाह्निकापूजा, भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 00101
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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