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________________ । खण्ड-तृतीय भट्टारक-परम्परा एवं उसका योगदान इनकी परिगणना पिछले खण्ड में 'परम्परापोषकाचार्यों' में की गई है, तथा इन्हें 'भट्टारक' की संज्ञा दी गई है। सामान्यतः जैन-परम्परा में भट्टारक का कोई पद नहीं है, यह मात्र एक पूज्यतावाची विशेषण है। किन्तु परिस्थितियों के कारण गृहस्थ और साधु के बीच की जो एक नई स्थिति सृजित हुई थी, उसे कोई-न-कोई नाम देना था, अतः इन्हें 'भट्टारक' कहा गया। नयी सम्भावनाओं का विकास इनके द्वारा नहीं हो सका है। पिष्टपेषण का कार्य ही इनके द्वारा हुआ है। वैसे तो संस्कृति-निर्माताओं के रूप में अनेक परम्परापोषक-आचार्य आते हैं, पर वाङ्मय-सृजन की मौलिक-प्रतिभा और अध्ययन-गाम्भीर्य प्रायः इन्हें प्राप्त नहीं था। धनी-मानी शिष्यों से वेष्टित रहकर, मन्त्र-तन्त्र या जादू-टोने की चर्चायें कर ये जनसाधारण को अपनी ओर आकृष्ट करते रहते थे। धर्मप्रचार करना, जनसाधारण को धर्म के प्रति श्रद्धालु बनाये रखना एवं सरस्वती का संरक्षण करना प्रायः परम्परापोषक-आचार्यों का लक्ष्य हुआ करता था। यही कारण है कि इन आचार्यों द्वारा गद्दियों पर समृद्ध ग्रन्थागार स्थापित किये गये। मौलिक-ग्रन्थ-प्रणयन के साथ आर्ष और मान्य कवियों एवं श्रुतधरों द्वारा रचित वाङ्मय, काव्य एवं अध्यात्म-साहित्य की प्रतिलिपियाँ भी इनके तत्त्वावधान में प्रस्तुत की गयी हैं। परम्परापोषक-आचार्यों ने युगानुसार रचनायें न लिखकर धर्मप्रचारार्थ कथाकाव्य या दर्शनसम्बन्धी ग्रन्थों का प्रणयन किया है। धर्म और संस्कृति के दायित्व का निर्वाह लगभग पाँच-छ: सौ वर्षों तक इन आचार्यों के द्वारा होता रहा है। ये आचार्य आरम्भ में निश्चयतः निस्पृही, त्यागी, ज्ञानी एवं जितेन्द्रिय थे। स्वयं विद्वान् होने के कारण मनीषी विद्वानों का सम्पोषण भी इन्हीं की गद्दियों से होता था। परम्परापोषकआचार्यों का लक्ष्य ग्रन्थों के संख्याबाहुल्य पर था, मौलिक-रचना की ओर नहीं। ___ इस श्रेणी के आचार्यों में भास्करनन्दि, सकलकीर्ति, वामदेव, सिंहसूरि, मल्लिषेण, श्रुतसागर, अजितसेन, वर्द्धमान भट्टारक, ज्ञानकीर्ति, ब्रह्म नेमिदत्त, वादिचन्द्र, सोमकीर्ति, विबुध श्रीधर, अमरकीर्ति, देवचन्द्र, यशकीर्ति, हरिचन्द्र, तेजपाल, पूर्णभद्र, दामोदर, त्रिविक्रम, ज्ञानकीर्ति, विद्यानन्दि, ब्रह्मश्रुतसागर, पद्मनन्दि, नेमिचन्द्र, सहस्रकीर्ति, जिनेन्द्रभूषण, धर्मभूषण, गुणचन्द्र, शुभचन्द्र, शुभकीर्ति, देवेन्द्रकीर्ति, चारित्रभूषण, नागदेव, चन्द्रकीर्ति, जयकीर्ति, सुमतिसागर, अरुणमणि, 0094 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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