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________________ अलबेली आम्रपाली ८७ "नारी के नयनबाणों का।" "नहीं देवि ! ऐसा कोई भय नहीं है। नयनबाणों को झेले बिना किसी के हृदय में कविता का जन्म नहीं होता।" कुमार शीलभद्र ने कहा। शीलभद्र का हृदय-सागर प्रेम की उत्ताल तरंगों से तरंगित हो रहा था। वह यौवन की प्रतिमूर्ति आम्रपाली को एकान्त में ले जाने के लिए आतुर था। पर . आम्रपाली को अपनी भावना बताने में उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। दोनों पहाड़ी के बीच वाले मार्ग से आगे बढ़ने लगे। वे चारों साथी उनसे छिटककर पूर्व योजना के अनुसार एक पल्ली में जा बैठे थे । आम्रपाली के साथ पूर्ण एकान्त प्राप्त करने की यह योजना शीलभद्र ने तय कर रखी थी। इधर बिंबिसार पर्वतीय मेले से श्रान्त होकर विश्राम कर रहा था। उसने उस गहन वन-प्रदेश में जाने की बात सोची। भूतिया मकान में रहते उसे काफी समय हो चुका था। वह उठा । स्नान आदि से निवृत्त होकर जो मिठाई मेले से खरीदी थी, उसे खाकर भूख मिटाई। कुछ जलपान कर वह वन-प्रदेश की ओर जाने की तैयारी करने लगा। उसने धनुष-बाण लिये, तूणीर बाणों से भरा था। अश्व पर आरूढ़ होकर जाने जैसी पगडंडी न मिलने के कारण वह पैदल ही उस गहन वन-प्रदेश की ओर चल पड़ा। उसी समय देवी आम्रपाली और कुमार शीलभद्र के दोनों अश्व उस संकरे मार्ग में प्रविष्ट हो चुके थे। बिंबिसार ने न उन्हें देखा और न वे बिंबिसार को देख सके । दोनों के अश्व उस संकरी पगडंडी को पार कर वन-प्रदेश में आ गए। आम्रपाली ने देखा । वह प्रदेश स्वर्ग की तुलना कर रहा था। वहां विविध प्रकार के पक्षी, हरिणों के यूथ, अपनी चपलता पर सदा गर्व करने वाले वानर, विविध प्रकार के वृक्ष, लताएं, फूलों से झकी हुई शाखाएं-यह सब देखकर आम्रपाली मुग्ध हो गयी। वह बोली-"कुमारश्री ! यह तो अत्यन्त सुन्दर वनप्रदेश है।" "हां, देवि ! बहुत सुन्दर है, पर है भयंकर।" "क्या सुन्दरता भयंकर होती है ?" आम्रपाली ने सहज स्वरों में कहा। "हां, देवि ! सुन्दरता भयंकर ही होती है ! आपका सौन्दर्य वैशाली के लिए..." बीच में ही आम्रपाली बोली-"नहीं प्रिय ! सुन्दरता कभी भयंकर नहीं होती। यह तो केवल लोगों की दृष्टि का दोष है 'यदि लोग वस्तु के यथार्थ स्वरूप को जानने का प्रयत्न करते तो मुझे आज लोगों के सामने नाचना न पड़ता।" . अश्व को रोककर शीलभद्र बोला-"देवि ! क्षमा करें ! मेरा आशय आपके दिल को दुःखाने का नहीं था।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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