SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलबेली आम्रपाली ६६ आशा भग्न हो जाती है तब चिन्ता उसे चिता-सी लगती है और मनुष्य तब अपनी हृदय की आग से धीरे-धीरे राख होता जाता है ! आम्रपाली के पालक-पिता आर्य- महानाम के साथ ऐसा ही हुआ । उसने अपनी पालक पुत्री आम्रपाली का बड़े लाड-प्यार के साथ लालन-पालन किया । कन्या की काया, देवदुर्लभरूप और अजेय बुद्धि-चातुर्य से मंडित थी । जव उसका रूप निखरा तब महानाम ने एक सुन्दर स्वप्न संजोया था कि आम्रपाली का रूप किसी सामान्य घर की शोभा नहीं बनेगा, पर किसी सम्राट की राजरानी के रूप में प्रासादों में शोभित होगा । प्रायः प्रत्येक माता-पिता अपनी संतान का रूप असाधारण ही मानने हैं। मोह और ममता का यह प्रभाव अनादिकाल से चला आ रहा है किन्तु आम्रपाली के सौन्दर्य के प्रति माता-पिता की ममता से भी वास्तविकता का आधार अधिक था । महानाम अपनी कन्या आम्रपाली के राजरानी का स्वप्न संयोए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं थी । परन्तु आम्रपाली जिस दिन जनपदकल्याणी बनी या दूसरे शब्दों में वह वैशाली के युवकों के मनोरंजन की कामणगारी नगर-नारी बनी, उसी दिन से महानाम की सारी भावनाएं जलकर राख हो गयीं । 1. जिस व्यक्ति की भावनाएं भस्मसात् हो जाती हैं, उसके जीवन का रस सुख जाता है । महानाम का जीवन भी चिंता और वेदना के अग्निकणों से झुलस गया । 1 एक बार वह अपने आपको आश्वस्त करने के लिए एक उद्यान में गया। वह एक आम्रवृक्ष के नीचे विश्राम करने बैठा । पीछे की झाड़ी में कुछ युवक द्यूतक्रीड़ा में संलग्न थे । वे परस्पर बातचीत कर रहे थे। उनकी बात का विषय था आम्रपाली, नगरनारी आम्रपाली । एक युवक ने कहा - " मैं आम्रपाली की सुन्दर काया का रसपान करने का प्रयत्न कर रहा हूं।" दूसरे ने कहा – “मैं आम्रपाली का निरावरण रूप और सौन्दर्य देखना चाहता हूं।" इसी प्रकार की अन्यान्य बातें चल रही थीं । महानाम के कानों में ये शब्द टकरा रहे थे । ये कुत्सित शब्द गर्म शीशे की भांति उसके मस्तिष्क को झुलसा रहे थे । इन शब्दों को सुनते ही महानाम को प्रतीत हुआ कि आकाश टूटकर उस पर गिर पड़ा हो । वह उद्यान में शान्ति प्राप्त करने आया था, पर प्रबल उथल-पुथल का अनुभव कर, वह उठा और भवन की ओर चला गया । आम्रपाली अपने पिता को सप्तभौम प्रासाद में ले जाना चाहती थी। अनेक निमंत्रणों के पश्चात् आषाढ़ी पूर्णिमा को वहां जाना निश्चित हुआ । आज आषाढ का पहला दिन था । आम्रपाली अपने प्रासाद में जा चुकी थी । महानाम ने सोचा ---- मुझे एक माह के बाद वहां जाना होगा । उसके मन में एक भय पल रहा था कि वहां जाने के पश्चात् अपनी पुत्री को दूसरे रूप में देखना
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy