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________________ ६६ अलबेली आम्रपाली __"महाराज ! आप मुझे जो खजाना दिखाने जा रहे हैं, यह आपकी महान् उदारता है । इस कार्य में इतनी सावधानी अवश्य ही रखनी चाहिए।" __ शंबुक ने अपने सैनिकों को गुप्त संकेतों से कुछ आज्ञा दी। सैनिक तत्काल सामने की दिशा में चले गए और भूमि पर औंधे सो गए ' ___ आसपास नजर डालकर शंबुक ने बिंबिसार का हाथ पकड़ा और कहा"मित्र ! किसी भी प्रकार का भय न रखते हुए तू मेरे कंधे पर हाथ रखकर धीरेधीरे चला आ ।" "जी"-बिंबिसार ने कहा। १४. अलंबुष का खजाना उस पंकिल और संकरी पगडंडी पर दोनों लगभग आधे कोस तक चले। शंबुक ने पूछा-"जयकीर्ति ! व्याकुलता तो नहीं है ?" "जहां आपका सहारा हो, वहां आकुलता कैसी?" बिंबिसार ने हंसते हुए कहा। "अब हम खजाने के निकट पहुंच गए हैं।" बिबिसार ने प्रसन्नता व्यक्त की, क्योंकि इस प्रकार आंखों पर पट्टी बांधकर चलने का अवसर जीवन में कभी नही आया था। वे आगे बढ़े । एक स्वर पर शंबुक रुक गया। बिबिसार भी खड़ा रह गया। शंबुक बोला-"कुछ समय तक हिले-डुले बिना तू यहां खड़ा रह। मैं अभी देखकर आता हूं।" _ बिंबिसार उसी पगडंडी पर खड़ा रह गया। आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। अंधकार के अतिरिक्त कुछ भी दृश्य नहीं था। उसने पट्टी खोलकर फेंक देने की बात सोची, पर राक्षसराज की गुप्तता के संरक्षण को प्रथम कर्तव्य मानकर उसने वैसा नहीं किया। ___ शंबुक पगडंडी से १५-२० कदम आगे गया और विशाल वृक्ष के पास खड़ा हो गया। उसने मुड़कर बिंबिसार की ओर देखा, फिर मन-ही-मन कुछ मन्त्रोच्चारण कर वृक्ष के आगे सिर झुकाकर खड़ा रह गया। कुछ समय पश्चात् उसने वृक्ष की एक सूखी लगने वाली शाखा पकड़ी, उसे तीन बार खींचा और देखा कि बिना किसी शब्द के उस विशाल वृक्ष के स्कंध में एक द्वार जैसा कुछ खुल गया है। राक्षसराज ने तीन बार वृक्ष को नमस्कार किया। फिर वह तत्काल बिबिसार के पास गया और उसे इस वृक्ष के पास ले आया। फिर वह बोला"जयकीति ! एक संकरे द्वार से हमें भूगृह में जाना है। पहले मैं उसमें प्रविष्ट
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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