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________________ ५८ अलबेली आम्रपाली अन्तःपुर के विशाल खण्ड में पहुंचकर बिंबिसार ने देखा कि एक विशाल पलंग पर राक्षसराज की प्रिय कन्या प्रियम्बा सो रही है। राक्षसराज की सभी रानियां वहां घेरा बनाकर खड़ी थीं। दो दासियां पंखा झल रही थीं। राक्षसराज शंबुक एक स्वर्ण-आसन पर बैठा था। राक्षसराज ने बिंबिसार का स्वागत किया। उसे अपने पास वाले आसन पर बिठाया । सभी रानियां और दासियां गुलाब के फूल जैसे तरुण बिंबिसार की ओर देखने लगीं। __राक्षसराज बोला-"जय कीर्ति ! यदि तू मेरी चिन्ता दूर कर देगा तो मैं तेरा उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा।" ___ "महाराज ! मैं अपना कर्तव्य करने में कोई कसर नहीं रखंगा। फिर भी मैं वैद्य नहीं हूं। मैं नहीं जानता कि इस कन्या को कोई रोग है या नहीं।" "नहीं, मित्र ! तुमको अवश्य सफलता मिलेगी । कल मध्यरात्रि में मैं अपनी कुलदेवी की आराधना में तल्लीन था। उस समय मेरा अन्तर् बोल उठा कि तेरे प्रयत्न से ही मेरी कन्या स्वस्थ होगी। अब तू अपना कार्य कर।" बिंबिसार बोला-"महाराज ! मैं कन्या के पलंग के निकट बैठकर ही राग की आराधना करूंगा। आप सबको एक ओर बैठना पड़ेगा।" तत्काल सभी वहां से एक ओर हटकर बैठ गये। बिबिसार वीणा लेकर खड़ा हुआ। उसने एक बार प्रियंबा की ओर देखा। वह ताम्रवर्णी युवती सघन निन्द्रा में सो रही थी। उसके आनन पर यौवन की ऊर्मियां अठखेलियां कर रही थीं। पूरे शरीर पर केवल एक कौशेय चादर थी। दोनों भुजाएं खुली थीं। उसका शरीर सुगठित और आकर्षक था। बिंबिसार देवी सरस्वती का स्मरण कर वहां आसन पर बैठ गया। उसके मानस चक्षु जितारी देश की पर्वतमाला के बीच भव्य मन्दिर में विराजित देवी सरस्वती की सौम्य प्रतिमा देख रहे थे । __उसके मन में सफलता-असफलता का कोई विकल्प नहीं था। देवी सरस्वती की स्तुति कर बिबिसार ने वीणा के तार पर झंकार किया । स्वर-मेल यथार्थ था। जीवन के छोटे-मोटे कार्यों को जो व्यक्ति फल की आशा किये बिना ही करता है तो उसे सफलता मिल सकती है, उसका पुरुषार्थ सिद्ध होता है । गुरुदेव के कहे हुए ये स्वर बिबिसार के मानस-पटल पर नाचने लगे। उसने मन-ही-मन गुरु का स्मरण किया और महाघोष नामवाली राक्षसप्रिय राग की आराधना प्रारम्भ की। इससे पूर्व बिबिसार को इस राग की आराधना का अवसर नहीं मिला था।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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