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________________ ५.२ अलबेली आम्रपाली सभी ने खा लिये । फल अत्यन्त स्वादिष्ट और मधुर थे । एक संकरे मार्ग से चलते हुए वे आगे बढ़ रहे थे । इतने में ही राक्षस नायक अपने कंधे पर लटकाए हुए श्रृंग वाद्य से एक भयंकर आवाज निकाली । तत्क्षण सामने से भी ऐसी ही आवाज उत्तर में आयी । नायक ने बिंबिसार की ओर देखकर कहा - " भाई ! अब हम निर्धारित स्थान पर आ गए हैं। वह जो सामने दीख रही है, वही है महाराजधिराज शंबुक की नगरी ।" fafaसार और धनंजय ने उस ओर देखा, पर वहां कोई भव्य प्रासाद नहीं दिखा। मिटटी और पत्थर के बने छोटे-छोटे मकान अवश्य दिखाई दिये । राक्षसों का बर्ताव कैसा होगा - यह प्रश्न तो था ही, पर अब क्या हो, जो होगा, वह देखा जाएगा । राक्षसनायक अपने राक्षस सैनिकों के साथ उन चारों को एक मकान में ले गया। बाहर से वह मकान अत्यन्त क्षुद्र लग रहा था। पर भीतर से भव्य और सुन्दर था । बीच में विशाल चौक था। स्वच्छता बहुत थी । सारा वातावरण शान्त और स्निग्ध था । विशाल मैदान में एक स्तम्भ था । उस स्तम्भ पर एक विशाल घण्टा था। राक्षसनायक ने उस घण्टे के साथ लटकती हुई रस्सी को पकड़कर घण्टा - नाद किया । कुछ ही क्षणों के पश्चात् एक ओर लोह द्वार खुला और उसमें से चार राक्षस बाहर आये और नायक के पास आकर खड़े हो गये । नायक ने कहा - "ये आगन्तुक महाराजाधिराज के दर्शनार्थ आये हैं । संगीतकार हैं । इन्हें अतिथि निवास में ले जाजो और इनके भोजन आदि की व्यवस्था कर राक्षसराज के पास इनके आगमन का समाचार भेजो ।" चारों राक्षसों ने बिंबिसार और उनके साथियों को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया | नायक बोला- " संगीतकार ! आप हमारे राज्य के विशेष अतिथि हैं । आपका विशेष स्वागत होगा । आपके अश्व हमारे अस्तबल में सुरक्षित रहेंगे ।" बिंबिसार ने आभार माना । चारों अतिथिगृह में गये । वह आवास स्थल अत्यन्त स्वच्छ और सुन्दर था । वहां राक्षसों ने खाट बिछौने आदि की व्यवस्था कर दी । एक राक्षस तरुणी पानी का बर्तन रख गयी । धनंजय ने देखा, राक्षस-तरुणी श्याम वर्ण की होने पर भी उसका व्यक्तित्व मोहक था। उसके नयन चमक रहे थे। उसका शरीर सुगठित और केशराशि सघन और खुदी थी। वह छोटा-सा अन्तर्वसन पहने हुए थी । और उसने वल्कल का कंचुकी बंध धारण कर रखा था ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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