SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० अलबेली आम्रपाली जाने से कतराते थे, वहां मगध का राजकुमार बिंबिसार अपने तीन साथियों के साथ दर-दर भटक रहा था। रात की घड़ियां। भयंकर वर्षा और तूफान। चारों ओर गगन में बीजगाज। वे चारों एक विशाल वृक्ष के नीचे रु के । कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। चारों अश्व साथ थे। सब पानी से तर-बतर हो रहे थे। जब बिजली चमकती तब उसके क्षणिक प्रकाश में उन्हें कुछ दिखता और वे उसे पहचान पाने का प्रयत्न करते। तब तक पुन: सघन अंधकार छा जाता। तांडव चल रहा था। बिबिसार के अतिरिक्त सभी भयभीत थे । धनंजय को यह भय सता रहा था कि यदि बिंबिसार को कुछ हो गया तो जीवित रहना व्यर्थ होगा। क्या कहेंगे महाराज ! क्या मेरे कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाएगी तब ? रात बीती । वर्षा मंद हो गयी। सूरज की किरणों ने प्रकाश बिखेरा और वे चारों अपने-अपने अश्वों पर आरूढ हो आगे बढ़े। आगे एक परिचारक चल रहा था। अकस्मात् उस परिचारक का अश्व चौंका । परिचारक यह जान पाये कि क्या है, इससे पहले ही अजगर जैसा विशाल प्राणी नीचे गिरा और परिचारक के चारों ओर लिपट गया । धनंजय ने एक क्षण का भी विलम्ब किये बिना म्यान से तलवार निकाली और अजगर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। परिचारक प्राणशून्यसा हो रहा था। कुछ क्षणों में वह स्वस्थ हुआ और फिर वे सब आगे चले। सामने एक नदी दिख रही थी। सभी उस ओर बढ़ने लगे। पर वे नदी के तट पर नहीं पहुंच सके, क्योंकि मार्गगत एक विशाल वृक्ष के नीचे से गुजरते समय उस वृक्ष से लगभग पन्द्रह मनुष्य, जो विशाल कद के और श्याम रंग के थे, नीचे कूद पड़े। प्रत्येक के हाथ में भयंकर शस्त्र था। प्रत्येक का चेहरा विकराल, निर्दय और अमानवीय जैसा लगता था । धनंजय ने तलवार को म्यानमुक्त करने के लिए अपना हाथ मूठ पर रखा, और तब बिंबिसार बोला-"मित्र ! उतावले मत बनो । जो कार्य शक्ति से असंभव लगते हैं वे युक्ति से संभव बन जाते हैं।" यह कहकर बिंबिसार ने उन व्यक्तियों की ओर देखकर कहा--"महानुभावो ! यहां कोई आश्रम है ?" वे भय पैदा करने वाले मनुष्य कुछ नहीं समझ पाये । उनमें से एक व्यक्ति ने प्राकृत भाषा में कहा-'तुम कौन हो? यहां क्यों आये हो?" बिंबिसार ने तत्काल प्राकृत भाषा में उत्तर दिया-"हम महाराजाधिराज राक्षसराज शंबुक से मिलने आए है। किन्तु भयंकर तूफान के कारण भटक गये हैं।" ___ "महाराजाधिराज से मिलने आये हो? कौन हो तुम ?" राक्षसों के सरदार ने कहा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy