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________________ अलबेली आम्रपाली "क्या कल ही ?" "हां, विलम्ब करना श्रेयस्कर नहीं होगा ।" "अच्छा, तू जैसा सोचती है वैसा ही करना । सावधानी बरतना ।' "हां, देवि ! पूरी सावधानी रहेगी। आप निश्चित रहें ।" रानी त्रैलोक्यसुन्दरी तत्काल उठी और अपनी पेटिका में से स्वर्ण मुद्राओं की दो थैलियां निकालकर श्यामा के हाथ में दे दीं। श्यामा ने दोनों थेलियों को ग्रहण करते हुए कहा- "मेरा दास इनसे अत्यधिक सन्तुष्ट हो जाएगा ।" ૪૦ लोक्य सुन्दरी ने परिचारिका को बुलाने के लिए ताली बजाई । कुछ ही क्षणों में मुख्य परिचारिका उपस्थित हो गई । रानी ने मैरेय लाने की आज्ञा दी । दासी प्रणाम कर चली गयी । रात का दूसरा प्रहर चल रहा था । उत्तम मंरेय के दो स्वर्ण पात्र लेकर परिचारिका तत्काल आ गयी । दोनों सखियों ने मेरेय का पान किया। श्यामा चली गयी। रानी अपने शयन कक्ष में आ गयी । उसी समय मगधेश्वर अपनी प्राणप्रिया के खंड में उपस्थित हुए । रानी जागती हुई पर्यंक पर सो रही थी । किन्तु वृद्ध पति के पदचाप सुनकर उसने अपनी आंखें बन्द कर लीं । महाराज पर्यंक के पास आकर बोले – “प्रिये...।" "ओह !" कहकर रानी हड़बड़ा कर उठी । "आज इतनी शीघ्र कैसे सो गयी ?" प्रसेनजित ने पूछा । "मैं तो आपकी ही प्रतीक्षा कर रही थी, इतने में नींद का एक झोंका आ आ गया । " "अरे, वह औषध तो ला ।" रानी तत्काल पलंग से नीचे उतरी और एक पेटिका की ओर गयी । महाराज प्रसेनजित ने अपने मुकुट को एक त्रिपदी पर और उत्तरीय को एक ओर रखा और अपने हाथों से रत्नजटित बाजूबन्द खोलने लगे । रानी त्रैलोक्यसुन्दरी एक शुक्ति में रखी हुई औषध ले आयी । वह सरसों दाने जितनी बड़ी थी। साथ में वह दूध से भरा एक स्वर्ण कटोरा भी लायी । महाराज ने उस गोली को मुंह में रखा और दुग्धपान कर लिया । रानी ने पूछा - " आज मंत्रणागृह में क्या किया ?" " शंबुक वन की चर्चा ।" "क्या मन्त्रिगण और महाबलाधिकृत शंबुक राक्षस पर आक्रमण करने में सहमत हुए।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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