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________________ अलबेली आम्रपाली ३५५ संघं शरणं गच्छामि। इस महागान में अभयजित का कोमल-मधुर स्वर, माता के हृदय में नयी चेतना का संचार कर रहा था। माता मानो अन्तर की गहराई में उतरकर वैसी की वैसी भूमि पर पड़ी थी... और उसी समय एक दास के साथ मगधेश्वर और धनंजय वहां आ पहुंचे। बिंबिसार ने प्रियतमा को धरती पर पड़ी देखकर जोर से पुकारा-"प्रिये! इधर देख 'मैं तेरा प्रियतम जयकीर्ति तुझे लेने आया हूं।" "आम्रपाली ने कुछ नहीं सुना।" बिंबिसार निकट आया। तेजमूर्ति गौतम बुद्ध को देख नत हो गया। भगवान् बोले-"राजन् ! तेरा पुत्र अभयजित मुक्ति-मार्ग का पथिक बना है। तेरी प्रियतमा आम्रपाली ने भी त्यागमार्ग स्वीकार किया है । और तेरी यह पुत्री पद्मसुन्दरी अवाक् बनकर खड़ी है।" बिंबिसार ने पुत्री की ओर देखा। उसको देखकर बिंबिसार का हृदय विचारों की तरंगों से तरंगित हो गया। पद्मसुन्दरी तत्काल पिता के चरणों में नत हो गई । धरती पर पड़ी आम्रपाली सहज स्वर में बोली-"भन्ते ! भन्ते !" "पाली ! पश्चिम आकाश की ओर देख "सूर्य अस्त हो चुका है 'तू अपने प्रासाद में जा.'कल मैं तेरे भवन पर आऊंगा' 'तेरी भावना सफल होगी। तेरे आगमन से भिक्षुणी संघ समृद्ध बनेगा।" भगवान् तथागत ने अभय प्रदान किया। "भगवन् ! मैं धन्य बनी।" कहकर आम्रपाली धीरे-धीरे खड़ी हुई। उसका सिर नत था। उसके नयन तथागत के चरणों में स्थिर हो रहे थे। भगवान् तथागत अपने शिष्यों के साथ वहां से लौट गए। भाव-तृप्ति और आनन्द की प्रतिमा आम्रपाली भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। आश्चर्य से मूक बने हुए अन्य सभी लोग उसके पीछे चल पड़े। उपवन के मुख्य द्वार पर सब खड़े रहे । भगवान् तथागत आम्र-कानन की ओर आगे बढ़े। ___ सुदास के हाथ से वह चमकती तलवार कभी की धरती पर गिर पड़ी थी। इस नये परिचय से उसके हृदय में भारी खलबली मच रही थी। पद्मसुन्दरी करुणा की साक्षात् प्रतिमा अपनी माता आम्रपाली से लिपट गई। आम्रपाली अपनी पुत्री को साथ ले रथ में बैठ गई। विविसार का स्वप्न टूट चुका था । आम्रपाली ने केवल एक बार ही मगधेश्वर की ओर देखा और उस दृष्टि को पढ़कर मगधेश्वर ने एक शब्द भी नहीं कहा। रथ वहां से चल पड़ा। धनंजय ने मगधेश्वर की ओर प्रश्नभरी दृष्टि से देखा । बिबिसार ने कहा"धनंजय ! अब हम यहीं से राजगृही की ओर प्रस्थान कर दें। और ऐसा ही हुआ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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